सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तेलंगाना विधानसभा स्पीकर को अवमानना का नोटिस जारी किया। अदालत ने यह कदम उस निर्देश का पालन न होने पर उठाया है, जिसमें स्पीकर को तीन महीने के भीतर बीआरएस के 10 विधायकों की अयोग्यता पर फैसला देने को कहा गया था।
31 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ निर्देश दिया था कि विधायकों के खिलाफ लंबित अयोग्यता याचिकाओं का निपटारा तय समयसीमा में हो। लेकिन निर्धारित अवधि बीत जाने के बाद भी फैसला न आने पर याचिकाकर्ताओं ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुनवाई के दौरान पीठ ने देरी को “अदालत के आदेश की गंभीर अवमानना” माना और स्पीकर को नोटिस जारी किया। हालांकि अदालत ने उन्हें फिलहाल व्यक्तिगत रूप से पेश होने से छूट दे दी।
इसी बीच, स्पीकर कार्यालय ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक अलग याचिका दायर की है, जिसमें अयोग्यता मामलों के निपटारे के लिए आठ सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा गया है। इस याचिका पर भी कोर्ट ने नोटिस जारी करके प्रतिक्रिया मांगी है।
सुनवाई में स्पीकर की ओर से पेश वकील ने जानकारी दी कि अयोग्यता से जुड़े चार मामलों की सुनवाई पूरी हो चुकी है और तीन अन्य में सबूत दर्ज कर लिए गए हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया अब तक पूरी हो जानी चाहिए थी। उन्होंने टिप्पणी की, “यह सीधे-सीधे अदालत की अवमानना है। अब स्पीकर ही तय करें कि वे काम पूरा करेंगे या नए साल का जश्न मनाएंगे।”
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की है।
क्या है पूरा मामला?
जिन विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लंबित है, वे बीआरएस छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। दल-बदल कानून के तहत ऐसे मामलों में स्पीकर को समय पर निर्णय देना अनिवार्य होता है। निर्णय न होने पर बीआरएस नेताओं—के.टी. रामाराव, पदी कौशिक रेड्डी और के.ओ. विवेकानंद—ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। जिसके बाद 31 जुलाई को शीर्ष अदालत ने तीन महीने के भीतर निर्णय देने का आदेश दिया था।