सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि आपराधिक मामलों में आरोपी को जमानत देने के लिए केवल समानता का सिद्धांत ही पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। यह टिप्पणी हत्या के एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने की।
इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आरोपी को जमानत दी थी, यह मानते हुए कि एक अन्य आरोपी को पहले ही जमानत मिल चुकी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को पलटते हुए कहा कि जमानत के लिए सिर्फ इसी आधार पर निर्णय नहीं लिया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस अपराध में आरोपी शामिल है, उसकी गंभीरता और हालात का पूरा ध्यान दिए बिना जमानत नहीं दी जा सकती। पीठ ने कहा, "अक्सर कहा जाता है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अपराध की परिस्थितियों की अनदेखी करके जमानत दे दी जाए।"
पीठ ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने जमानत देते समय सभी जरूरी पहलुओं पर विचार नहीं किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समानता का उद्देश्य केवल आरोपी की भूमिका को ध्यान में रखना है, न कि अपराध का प्रकार ही दोनों के लिए समान होने का आधार बनाना।