नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रविवार को स्पष्ट किया कि भारत और अमेरिका के बीच कोई भी व्यापारिक समझौता तभी संभव होगा, जब वह भारत की “रेड लाइन” यानी राष्ट्रीय हितों की सीमाओं का सम्मान करेगा। उन्होंने कहा कि फिलहाल दोनों देशों के बीच टैरिफ और व्यापार नीतियों को लेकर मतभेद बने हुए हैं, लेकिन समाधान की दिशा में बातचीत जारी है।
दिल्ली में आयोजित चौथे कौटिल्य इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में बोलते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सहमति नहीं बन पाई है, खासकर प्रस्तावित व्यापार समझौते को लेकर। उन्होंने कहा, “अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है, और हमारे लिए वहां के साथ स्थायी व्यापारिक समझ बनाना महत्वपूर्ण है, लेकिन वह भारत की शर्तों और हितों का सम्मान करते हुए ही होना चाहिए।”
विदेश मंत्री ने बताया कि अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए कुछ टैरिफ और प्रतिबंध असमान हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रूस से ऊर्जा खरीद को लेकर भारत को निशाना बनाया गया, जबकि कई अन्य देश भी ऐसा ही कर रहे हैं। जयशंकर ने कहा कि ऐसे दोहरे मानकों से मुक्त होकर सहयोग की नई दिशा तय करनी होगी।
कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री ने मौजूदा वैश्विक हालात पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज युद्ध की प्रकृति पूरी तरह बदल चुकी है। अब लड़ाइयां ‘कॉन्टैक्टलेस’ यानी संपर्क रहित हो गई हैं, जहाँ दूर से चलाए गए हथियार निर्णायक प्रभाव डाल रहे हैं।
जयशंकर ने यह भी जोड़ा कि वर्तमान दौर में वैश्वीकरण के खिलाफ भावना बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि एक तरफ जोखिम बढ़ रहे हैं, तो दूसरी ओर दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाएं और राजनीतिक व्यवस्थाएं खुद को सुरक्षित करने की कोशिश कर रही हैं।
विदेश मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “कुछ बड़ी शक्तियां अब अपनी ताकत का खुलकर इस्तेमाल करने से नहीं हिचकतीं। प्रतिस्पर्धा का दौर है और हर देश अपने हितों को प्राथमिकता दे रहा है।”
अमेरिका और चीन के रिश्तों को लेकर जयशंकर ने कहा कि आने वाले वर्षों में इन दोनों देशों के संबंध ही वैश्विक राजनीति की दिशा तय करेंगे। उन्होंने कहा, “अमेरिका अधिक मुखर हुआ है, जबकि चीन नई संस्थागत व्यवस्थाओं को स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। इन दोनों के बीच की गतिशीलता पूरी दुनिया पर असर डालेगी।”
भारत की विदेश नीति पर बात करते हुए जयशंकर ने कहा कि देश की प्राथमिकता है - संतुलित लेकिन उत्पादक संबंध बनाना। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि किसी भी साझेदारी से दूसरे संबंधों के अवसर बाधित न हों। यही मल्टी-अलाइनमेंट की असली परीक्षा है।”
जयशंकर ने कहा कि बीते दशक में भारत ने अपनी विदेश नीति की मजबूत नींव रखी है और आने वाले साल इस नीति की परख का समय होंगे। उन्होंने कहा कि "हमें विश्वास है कि भारत आत्मविश्वास, स्थिरता और उम्मीद के साथ इस परीक्षा में सफल रहेगा।"