आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, 'हम यह लड़ाई जम्मू-कश्मीर रियासत के साथ मिलकर लड़ रहे हैं और इसलिए हमने पिछले दिनों कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। हालांकि ये गठबंधन हमारे लिए आसान नहीं था। हमने बहुत मुश्किल समय देखा है। बिना किसी वजह नौजवानों को सताया गया, तंग किया गया और अंधाधुंध पीएसए का इस्तेमाल हुआ। हमने अपने हलफनामें में वादा किया है कि अगर हमारी हुकूमत आई तो हम जम्मू-कश्मीर से पीएसए का कानून हटा देंगे। सख्ती और जुल्म के अलावा पिछले 5-6 सालों में हमने कुछ नहीं देखा।'

बता दें कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार चुनाव होंगे। जम्मू-कश्मीर में तीन चरण में मतदान होगा। 18 सितंबर को पहले चरण का मतदान होगा। 25 सितंबर को दूसरा फेज की वोटिंग होगी। एक अक्तूबर को तीसरा चरण का मतदान होगा। जबकि चार अक्तूबर को मतगणना होगी। जम्मू -कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच मैराथन बैठक के बाद 83 सीटों पर सहमति बनी। इसमें 51 सीटों पर नेकां और 32 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे। पांच सीटों पर सहमति नहीं बनने के कारण यहां दोस्ताना मुकाबला होगा। जबकि एक सीट माकपा और एक सीट पैंथर्स पार्टी को दी गई है। 

क्या है पीएसए कानून (पब्लिक सेफ्टी एक्ट) 

इस कानून के अनुसार, सार्वजनिक सुरक्षा के मद्देनजर किसी भी व्यक्ति को दो साल तक बिना मुकदमा गिरफ्तार किया जा सकता है या फिर उसकी नजरबंदी की जा सकती है। कश्मीर के नेताओं के लिए सिरदर्द बन रहा यह कानून फारूक अब्दुल्ला के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने बनाया था। इस कानून को लकड़ी के तस्करों से निपटने के लिए लागू किया गया था। 

इसलिए पड़ी जरूरत: 
जन सुरक्षा कानून 1970 के दशक में जम्मू-कश्मीर में लकड़ी की तस्करी एक बड़ी समस्या बनती जा रही थी। कड़ा कानून नहीं होने की वजह से अपराधी आसानी से छूट जाते थे। इसके समाधान के लिए शेख अब्दुल्ला इस कानून को लेकर आए। 

90 के दशक में सुरक्षा बलों के काम आया
कश्मीर में 1990 के दौरान उग्रवाद चरम पर पहुंच गया था। इसे रोकने के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए यह कानून एक अहम हथियार बना। इसी दौरान तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रदेश में विवादास्पद सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम को लागू किया। इसके बाद पीएसए के तहत कई लोगों को पकड़ने का भी काम किया गया। 

पत्थरबाजों के खिलाफ कारगर कानून 
हालिया समय में इस कानून का इस्तेमाल आतंकियों, अलगाववादियों और पत्थरबाजों के खिलाफ किया जाता रहा है। 2016 में आतंकी बुरहान वानी की हत्या के बाद कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान पीएसए के तहत 550 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था।