मुंबई। महाराष्ट्र की सियासी हलचल में बड़े सवालों का जवाब अगले साल मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना और एनसीपी के चुनाव चिन्ह विवाद की अंतिम सुनवाई 21 जनवरी, 2026 तक टाल दी है। इस सुनवाई में यह तय होगा कि असली शिवसेना और असली एनसीपी कौन हैं।

शिवसेना (यूबीटी) ने एकनाथ शिंदे समूह को पार्टी का चुनाव चिन्ह 'धनुष-बाण' दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर की थी। वहीं, एनसीपी (शरद पवार) ने चुनाव आयोग के अजित पवार को पार्टी का चुनाव चिन्ह 'घड़ी' दिए जाने के फैसले को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों मामलों को एक साथ सुनने का निर्णय लिया क्योंकि इनमें मुद्दे समान हैं।

पीठ के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने 12 नवंबर, 2025 को सुनवाई अगली तिथि तक के लिए स्थगित कर दी। जस्टिस सूर्यकांत ने निर्देश दिया कि 22 जनवरी को भी सुनवाई जारी रह सके। शिवसेना (यूबीटी) की ओर वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और देवदत्त कामत पेश हुए, जबकि एकनाथ शिंदे गुट की ओर मुकुल रोहतगी और एन. के. कौल मौजूद रहे।

शिवसेना (यूबीटी) का आरोप है कि चुनाव आयोग ने 2022 में पार्टी में उभरे सियासी संकट के बाद शिंदे गुट की शक्ति को ज्यादा महत्व दिया। वहीं, उद्धव ठाकरे गुट का कहना है कि आयोग ने पार्टी के भीतर बहुमत तय करने की असली परीक्षा नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव गुट को 'शिवसेना (यूबीटी)' और 'जलती मशाल' चिन्ह का उपयोग करने की अनुमति दी है, जब तक मामला लंबित है।

इसी तरह, शरद पवार गुट ने भी चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी थी और कोर्ट ने उन्हें अंतरिम रूप से 'तुरही वाले आदमी' चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी। अजित पवार गुट को भी बताया गया कि उनका चुनाव चिन्ह 'घड़ी' इस मामले के लंबित रहने तक प्रचार में इस्तेमाल किया जा सकता है।

यह सुनवाई महाराष्ट्र की राजनीति और आगामी विधानसभा चुनावों के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि दोनों ही पार्टियों के भविष्य और चुनाव चिन्ह का असली मालिक कौन होगा, यह तय होना अभी बाकी है।