तेलंगाना में हुए टनल हादसे में पंजाब के गुरप्रीत सिंह की भी मौत हुई है। हादसे के 16वें दिन बाद गुरप्रीत का शव मलबे के नीचे से निकाला गया है। भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज आधा किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव चीमा कलां के गुरप्रीत सिंह के परिवार की उम्मीद आखिर 16वें दिन खत्म हो गई। उसका शव जल्द गांव पहुंचने की उम्मीद है। गुरप्रीत दो बेटियों का पिता था। उसके पिता की पहले ही मौत हो चुकी है। अब गुरप्रीत की मौत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। सुहाग उजड़ जाने के बाद पत्नी सदमे में है। 

गुरप्रीत सिंह तेलंगाना की निजी कंपनी में बतौर ऑपरेटर काम करता था, जो सुरंग में अन्य साथियों समेत फंसा हुआ था। कड़ी मेहनत के बाद रविवार को गुरप्रीत का शव 10 फीट की गहराई से निकाल लिया गया है। गुरप्रीत सिंह की पत्नी राजविंदर कौर अपनी दोनों बेटियों सुपनदीप कौर व दमनप्रीत कौर को यह बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही कि अब उनके सिर पर पिता का साया नहीं रहा। 

डीसी से मांगी थी मदद, नहीं हुई सुनवाई
सरपंच मुनीश कुमार मोनू चीमा ने प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाए। चीमा का कहना है कि अपने खर्च पर गांव के तीन लोगों को तेलंगाना भेजा था। तरनतारन जिले के डीसी को मिलकर मदद मांगी गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। दुख की बात यह है कि अभी तक पंजाब सरकार का कोई भी नुमाइंदा या अधिकारी परिवार को हौसला देने नहीं पहुंचा। पोस्टमार्टम की कार्रवाई के बाद शव को तेलंगाना सरकार द्वारा पंजाब भेजा जाना है, जिसके बाद अंतिम संस्कार किया जाएगा। गुरप्रीत सिंह की मां दर्शन कौर कहती हैं कि गुरप्रीत के पिता की वर्षों पहले मृत्यु हो गई थी। पीड़ित परिवार को तेलंगाना सरकार ने 25 लाख रुपये की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की है। हालांकि पंजाब सरकार की तरफ से मदद के लिए कुछ नहीं किया गया है। यहां तक कि सरकार और प्रशासन की तरफ से परिवार से मिलने तक कोई नहीं आया है। 

22 फरवरी को हुआ था हादसा
गुरप्रीत सिंह के अलावा सात अन्य लोग भी टनल के अंदर फंसे हुए थे, जिनमें मनोज कुमार (यूपी), सनी सिंह (जम्मू-कश्मीर), गुरप्रीत सिंह (पंजाब) और झारखंड का संदीप साहू, जेगता जेस और अनुज साहू भी शामिल हैं। श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) परियोजना की सुरंग का एक हिस्सा 22 फरवरी को ढह जाने के बाद आठ लोग इंजीनियर और मजदूर फंस गए थे। एनडीआरएफ, भारतीय सेना, नौसेना और अन्य एजेंसियों के विशेषज्ञ उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए अथक प्रयास कर रहे थे।