मालदीव के राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज्जू को चीन का पिछलग्गू माना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत को अपने मंत्रियों तथा सांसद से अपमानित कराने के तुरंत बाद चीन की राजधानी बीजिंग जा पहुंचे हैं। 5 दिनों की राजकीय यात्रा पर चीन आने से भारत के चिर-विरोधी चीन मुहम्मद मुइज्जू की यात्रा से गदगद है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मुहम्मद मुइज्जू व उनकी पत्नी साजिदा का शाही अंदाज़ से स्वागत किया है। चीन पहुंचते ही शी जिनपिंग ने मालदीव को भरपूर सहायता देते हुए 20 समझौतों पर फटाफट हस्ताक्षर कर दिए। पर्यवेक्षकों का मानना है कि मुहम्मद मुइज्जू और शी जिनपिंग के बीच पहले ही गुपचुप समझौता हो चुका था कि मालदीव भारत के साथ पुरानी नज़दीकियां खत्म करके पूरी तरह चीन की गोदी में बैठेगा।
दशकों पुराने संबंधों व भारत की मित्रता को दरकिनार कर मुहम्मद मुइज्जू ने वे सभी हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए थे, जिनसे भारत-मालदीव का राजनयिक सम्बन्ध कमजोर पड़ जाये या टूट जाये। मुइज्जू ने इसी विचार से भारत को अपने सुरक्षा सैनिक हटाने की चेतावनी दी थी। मालदीव में चुनाव प्रचार के दौरान मुहम्मद मुइज्जू ने भारत विरोधी वक्तव्य देने शुरू कर दिए थे। सत्ता में आने के बाद वे पूरी तरह से चीन के पिछलग्गू बन चुके हैं।

ऐसा नहीं कि भारत मुइज्जू के हथकंडों से परिचित न हो। भारत को यह भी ज्ञात है कि चीन भारत के पड़ौसी देशों को अपने पाले में लाकर भारत की प्रगति को अवरुद्ध करना चाहता है। भले ही कांग्रेस व अन्य वामपंथी नेता चीन की पैरोकारी में मौजूद हों किन्तु मोदी सरकार चीन के हर दांवपेंच को समझती है और विकल्प तथा नये रास्ते निकालती है। चीन की ओर से भारत को सैन्य, आर्थिक व राजनयिक मोर्चे पर चुनौतियां मिलती हैं। हमारा नेतृत्व कुशलता पूर्वक इनका मुकाबला करने में तत्पर है। मालदीव प्रकरण भी चीन की भारत विरोधी रणनीति का ही एक हिस्सा है। भारत की जनता ने दिखा दिया है कि वह मालदीव-चीन की कुटिल चालों के विरुद्ध देश की सम्प्रभुता व सुरक्षा के लिए एकजुट है

गोविन्द वर्मा