क्या मंदिर में जाकर टन-टन-टन घंटियां बजाते हो,
क्या वहां जाकर औरतों को छेड़ते हो?
मेरे साथ नारा लगाओ- चौकीदार चोर है! चोर है!!
तुम पत्रकार हो? जात बताओ, जात बताओ, ओबीसी हो, एस.सी. हो। मुसलमान हो क्या हो?
ट्रंप साहब का फोन आया लम्बे लेट गए। बोले क्या हुक्म मेरे आका, उधर से आवाज आई- नरेंद्र-सरेंडर !
तीन तरह के घोड़े होते हैं- एक बारात का घोड़ा, एक रेस का घोड़ा, तीसरा लंगड़ा घोड़ा ! लंगड़ा घोड़ा किस काम का? इसके सामने थोड़ी सी घास डालो, पीछे से चाबुक मारो भगा दो ! ठीक है ना? ऐसा ही करोंगे?
यह तो इसके भौंकने की बानगी है। अदालतों की फटकार के बाद भी ऐसे ही टर्राता है। सोचता है इसी तरह जोकरी करते करते भारत का शहंशाह बन जाऊंगा। इसकी बेहूदगी से तंग आकर पार्टी के बुद्धिमान, अनुभवी, संवेदनशील वरिष्ठ नेता एक-एक कर किनारा कर चुके हैं। अलबत्ता इस जैसी गन्दी ज़हनियत के लोग हर बदतमीजी पर तालियां बजाने को कतार में खड़े मिलते हैं। यही इस शख्स की सबसे बड़ी उपलब्धि है। पार्टी चाहे गड्ढे में जाए, इसे मसखरी करके तालियां बजवानी हैं, सो इसी काम में जुटा है। आगे क्या कह दे, क्या कर दे, इससे कोई बईद नहीं।
गोविंद वर्मा
संपादक 'देहात'