तितावी (मुज़फ्फरनगर) स्थित इंडियन पोटाश लिमिटेड चीनी मिल के गन्ना क्रय केन्द्रों के 17 लिपिकों ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया है। त्यागपत्र देने वाले तौल क्लेर्कों का कहना है कि हम अपने-अपने क्रय केन्द्रों पर किसानों का गन्ना सही तरीके से तौलते हैं, यानी क्रय केन्द्रों पर घटतौली नहीं होती किन्तु जब यह गन्ना मिल गेट पर लगे कांटे में तौला जाता है तो गन्ना कम निकलता है। कम गन्ने का मुतालबा मिल हमसे वसूलता है, जिससे हमें आर्थिक हानि होती है।
मिल प्रबंधन इस आरोप से इंकार कर रहा है। अब तक बाहरी क्रय केन्द्रों पर घटतौली की शिकायतें मिलती थीं। अतीत में मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ आदि जिलों के सैकड़ों तौल क्लर्क घटतौली में पकड़े गए हैं। घटतौली के विरुद्ध इस समय गन्ना विभाग और चीनी मिलों का मैनेजमेंट सख्त है।
घटतौली चीनी मिलों का पुराना रोग है। वर्षों पहले तत्वकालीन गन्ना राज्यमंत्री रामचन्द्र वाल्मीकि जब गन्ना केन्द्रों के निरीक्षण को निकले तो उन्हें मुज़फ्फरनगर व सहारनपुर जिलों के अनेक गन्ना क्रय केन्द्रों में कुछ में गड़बड़ी मिली, कुछ कांटे
ठीक मिले।
यह एक वास्तविकता है कि चीनी मिलों का प्रबंधतंत्र या मिल मालिकान मिलों में क्षेत्रीय नेताओं और किसान संगठनों के दबाव में अपनी मर्जी के खिलाफ कुछ लोगों को मिल में तैनात करने को मजबूर होते हैं। इनमें श्रमिक संगठनों द्वारा प्रस्तावित लोग भी होते हैं। ये लोग मिल प्रबंधन की छाती पर मूंग दलते हैं और मिल से वेतन की उगाही के अलावा और कुछ नहीं करते। नेताओं के किसी चमचे को छेड़ने से मिल का मैनेजमेंट परहेज करता है। फिर भी यह जांच जरूर होनी चाहिये कि तौल लिपिकों को आर्थिक हानि क्यूँ हो रही है। मिल गेट पर घपला है तो मिल के मालिकान व मैनेजमेंट को सजा जरूर मिलनी चाहिए। घटतौली से सीधे किसान प्रभावित होता है, उसका हित सर्वोपरि है।
गोविन्द वर्मा