श्रम विभाग के निर्णय के अनुसार प्रदेशभर में दुकानों तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में साप्ताहिक बन्दी का प्रावधान है। अब से 30-40 वर्ष पूर्व इस प्रावधान का सख्ती से पालन होता था। बाद में संविद, बसपा, सपा, भाजपा सरकार आईं और दुकानदार, प्रतिष्ठानों के संचालक, यहां तक कि श्रम विभाग के अधिकारी भूल गये कि मुजफ्फरनगर शहर में मंगलवार को, नईमंडी में रविवार को साप्ताहिक बन्दी का प्रावधान है।
वर्तमान जिला अधिकारी उमेश मिश्र ने 19 सितम्बर 2024 को मुजफ्फरनगर के जिला अधिकारी पद संभालते ही व्यवस्था में मूलभूत सुधार की ओर कदम बढ़ाये इसमें साप्ताहिक बन्दी का मुद्दा भी शामिल था। शहर और नई मंडी के शत प्रतिशत व्यावसायिक प्रतिष्ठान साप्ताहिक बन्दी का पालन करते पाये गए। अवकाश के दिनों में शहर व नई मंडी की साप्ताहिक बन्दी को देख कर प्रतीत होता था, मानो यहां कर्फ्यू लगा है।
किन्तु अब स्थिति बदली हुई है। चुनींदा दुकानों व संस्थानों को छोड़ शहर व नई मंडी के 50 से 70 प्रतिशत व्यावसायिक संस्थान खुले रहते हैं। दुकानदारों को न राजाज्ञा का सम्मान है, न ही जुर्माने का खौफ। जिला अधिकारी महोदय स्वयं या किसी वरिष्ठ अधिकारी के माध्यम से इसकी पड़ताल करा सकते हैं।
शासन ने साप्ताहिक बन्दी की व्यवस्था क्यों लागू की, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर काम करने वाले कर्मियों या आम नागरिकों को बन्दी से क्या लाभ है, इन सब पर विचार करके ही साप्ताहिक बन्दी प्रथा लागू हुई। गत 17 फरवरी, 2024 को जिला अधिकारी महोदय ने साप्ताहिक बन्दी के पालन का निर्देश दिया था, जिसका सख्ती से पालन किया गया। प्रश्न है कि अब ऐसा क्या हुआ कि दुकानदार साप्ताहिक बन्दी को भूल बैठे हैं? यदि बन्दी का प्रावधान श्रम विभाग में मौजूद है तो उसका पालन होना चाहिए।
गोविंद वर्मा (संपादक 'देहात')