चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद पर कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि किसी भी तरह की संपर्क व्यवस्था तभी सार्थक है जब उसमें राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान हो।
मोदी ने याद दिलाया कि पिछले 24 वर्षों में एससीओ ने एशिया में सहयोग और आपसी जुड़ाव को मजबूती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत की नीति भी तीन स्तंभों — सिक्योरिटी (Security), कनेक्टिविटी (Connectivity) और ऑपर्च्युनिटी (Opportunity) — पर आधारित है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संपर्क मजबूत होने से न केवल व्यापार बढ़ता है बल्कि विकास और विश्वास के रास्ते भी खुलते हैं। इसी सोच के तहत भारत चाबहार पोर्ट और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर जैसी परियोजनाओं को आगे बढ़ा रहा है, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जुड़ाव को गति देंगे।
उन्होंने बताया कि भारत "सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन" के मंत्र पर आगे बढ़ रहा है और कोविड से लेकर आर्थिक अस्थिरता तक हर चुनौती को अवसर में बदलने की कोशिश की है। साथ ही उन्होंने एससीओ देशों को भारत की विकास यात्रा का हिस्सा बनने का आमंत्रण भी दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एससीओ समय के साथ नई चुनौतियों के अनुसार विकसित हो रहा है। संगठित अपराध, ड्रग तस्करी और साइबर सुरक्षा जैसी समस्याओं से निपटने के लिए संगठन चार नए केंद्र स्थापित कर रहा है, जो इसकी प्रगतिशील सोच को दर्शाता है।
लोगों के बीच संबंधों को गहराने के लिए मोदी ने ‘सभ्यता संवाद मंच’ (Civilisation Dialogue Forum) की स्थापना का सुझाव दिया। उनके अनुसार यह मंच सदस्य देशों को अपनी प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, परंपरा और साहित्य को साझा करने का अवसर देगा।