बुधवार को बिहार विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने राज्य सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला। सदन से बाहर मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री को सदन में चल रही बहस की जानकारी नहीं थी, फिर भी उन्होंने बीच में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। तेजस्वी ने दावा किया कि बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह दिशाहीन है और सरकार किसी ‘रिमोट कंट्रोल’ से संचालित हो रही है।
उन्होंने कहा कि विपक्ष को अपनी बात रखने का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन सरकार उसे दबाने का प्रयास कर रही है। चुनाव की तैयारियों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा 11 प्रकार के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, लेकिन आधार कार्ड को मान्यता नहीं दी जा रही, जबकि सरकार खुद आधार को राष्ट्रीय पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करती है।
तेजस्वी ने बिहार को दस्तावेजीकरण के मामले में सबसे पिछड़ा राज्य बताया और कहा कि पारदर्शी चुनाव की बजाय भ्रम और अव्यवस्था फैलाई जा रही है। उन्होंने कहा कि फर्जी मतदाता का मुद्दा उठाकर आम लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने की साजिश की जा रही है।
उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी भी कीमत पर जनता के मताधिकार को छीने जाने नहीं दिया जाएगा। तेजस्वी ने इसे लोकतंत्र और संविधान पर हमला करार दिया और कहा कि भाजपा के इशारे पर चुनाव आयोग मतदाता सूची के बहाने लोगों के अधिकारों का हनन कर रहा है। उन्होंने एलान किया कि इस एकतरफा रवैये के खिलाफ बिहार में विपक्ष का आंदोलन जारी रहेगा।
इस बीच, वाम दलों के विधायक महबूब आलम ने भी सीमांचल के इलाकों की स्थिति को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बाढ़ में दस्तावेज गंवाने वाले लाखों लोग आज बिना किसी वैध पहचान के हैं। ऐसे में उनसे दस्तावेज मांगना अव्यावहारिक है और यह स्थिति अप्रत्यक्ष रूप से एनआरसी जैसी बनती जा रही है। उन्होंने आशंका जताई कि यदि यही हालात रहे तो आने वाले दिनों में इन लोगों को न केवल मतदान के अधिकार से वंचित किया जाएगा, बल्कि नागरिकता पर भी खतरा मंडरा सकता है।
महबूब आलम ने मांग की कि विधानसभा में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो विपक्ष आंदोलन तेज करेगा।