नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक ट्रांसजेंडर महिला शिक्षक को मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिसे उसकी लैंगिक पहचान के कारण उत्तर प्रदेश और गुजरात के दो निजी स्कूलों से नौकरी से निकाल दिया गया था। जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस फैसले को ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व जज जस्टिस आशा मेनन की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की है। यह समिति समान अवसर, समावेशी चिकित्सा देखभाल, लैंगिक विविधता और लैंगिक असमानता जैसे मुद्दों पर विचार करेगी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने जेन कौशिक द्वारा दायर रिट याचिका पर यह निर्णय सुनाया।
जेन कौशिक को ट्रांसजेंडर पहचान के कारण दो निजी स्कूलों से बर्खास्त किया गया था। जस्टिस पारदीवाला ने कहा, “जब तक सरकार कोई नीति दस्तावेज जारी नहीं करती, तब तक हमने दिशानिर्देश तैयार कर दिए हैं। यदि किसी प्रतिष्ठान के पास दिशानिर्देश नहीं हैं, तो केंद्र सरकार द्वारा नीति जारी होने तक इन दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा।”
समिति में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ और अधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। इनमें कर्नाटक के ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता अकाई पद्मशाली, दलित और ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता ग्रेस बानू, तेलंगाना के ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता वैजयंती वसंत मोगली, जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर गौरव मंडल, बंगलूरू स्थित सेंटर फॉर लॉ एंड पॉलिसी के वरिष्ठ एसोसिएट नित्या राजशेखर और एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ इन इंडिया के सेवानिवृत्त सीईओ डॉ. संजय शर्मा शामिल हैं।
इस फैसले से ट्रांसजेंडर समुदाय को रोजगार और समान अवसर के मामले में मजबूत संरक्षण मिलने की उम्मीद है।