दिल्ली से राजस्थान तक अरावली पहाड़ियों को लेकर सियासी बहस तेज हो गई है। भारत की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में शुमार अरावली आज एक गंभीर पर्यावरणीय संकट के दौर से गुजर रही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की नई व्याख्या के अनुसार केवल वही पहाड़ियां अरावली मानी जाएंगी, जिनकी ऊंचाई आसपास की सतह से 100 मीटर से अधिक हो और जिनके आसपास 500 मीटर के दायरे में दो या अधिक पहाड़ियां हों।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस नई परिभाषा के लागू होने पर राजस्थान की करीब 90 फीसदी अरावली पहाड़ियां संरक्षण से बाहर हो जाएंगी, जिससे पर्यावरणीय खतरे बढ़ सकते हैं।
राजस्थान की राजनीति भी इस मसले पर सक्रिय हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने इस मुद्दे को उठाते हुए व्यापक अभियान शुरू किया है। भाटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस नई परिभाषा को खनन माफियाओं के लिए "रेड कार्पेट" करार दिया और अरावली को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मांगा। गहलोत भी सोशल मीडिया के माध्यम से इसे जन आंदोलन बनाने में जुटे हैं।
राजस्थान में कुल 12,081 अरावली पहाड़ियां हैं, जिनमें से केवल 1,048 की ऊंचाई 100 मीटर से अधिक है। इसका मतलब यह है कि राज्य की लगभग 90 फीसदी पहाड़ियां नए दायरे से बाहर हो जाएंगी। पर्यावरण विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इससे न केवल अवैध खनन को वैधता मिल सकती है, बल्कि रियल एस्टेट, होटल और फार्महाउस परियोजनाओं में वृद्धि होगी और मरुस्थलीकरण तेज होगा। यह मानसूनी गतिविधियों और स्थानीय जल संकट पर भी गंभीर असर डाल सकता है।
अरावली की लंबाई लगभग 692 किलोमीटर है और इसका 80 फीसदी हिस्सा राजस्थान के 15 जिलों से गुजरता है। यह पर्वतमाला तापमान नियंत्रण, मानसून दिशा निर्धारण और धूल भरी आंधियों को रोकने में अहम भूमिका निभाती है। अगर इसकी सुरक्षा पर समझौता होता है, तो उत्तर-पश्चिम भारत में पर्यावरणीय असंतुलन और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है।