21 जून को खबर आई कि मीरापुर वन रेंज में ग्राम कासमपुर खोला तथा हैदरपुर पक्षी विहार क्षेत्र की सरकारी जमीन पर खड़े खैर के लगभग 100 वृक्षों को काट लिया गया है। खैर की लकड़ी से कत्था तैयार होता है और यह लकड़ी बहुत कीमती होती है। इस हिसाब से 100 पेड़ कई लाख रुपये मूल्य के हुए। जंगल से पेड़ काटना, घास का तिनका उखाड़ने जैसा काम नहीं। पेड़ काटना वह भी 100 पेड़ काटना छोटा मोटा काम नहीं। 100 पेड़ कट जायें और आला अफसरान को पता ही न लगे, यह हैरत की बात है। आखिर वे जिला मुख्यालय में बैठ कर क्या करते हैं? इससे भी अधिक आश्चर्यजनक यह है कि कटे पेड़ों को मीरापुर की आरामशीन तक और कोई नहीं, वन विभाग का दरोगा रवि कुमार ट्रैक्टर ट्रॉली में लाद कर लाया। सामाजिक वानिकी अधिकारी कन्हैयालाल पटेल को पता चला तो वे मीरापुर पहुंचे और चुराई गई लकड़ी बरामद की। उन्होंने वन दरोगा रवि कुमार को निलंबित भी कर दिया। दूसरा आश्चर्य यह कि वन क्षेत्राधिकारी आरिफ जमाल खां जब वन दरोगा रवि कुमार के विरुद्ध रपट लिखाने ककरौली थाना पहुंचे तो पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने से साफ इंकार कर दिया। क्यों? इसकी वजह क्या थी, यह जानकारी पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को अवश्य करनी चाहिए।
सबसे बड़ा आश्चर्य यह हुआ कि जब वन क्षेत्राधिकारी आरिफ जमाल खां चोरी की लकड़ियों की दूसरी खेप बरामद करने और लकड़ी चोरों की तहकीकात करने लक्सर (हरिद्वार जनपद) गये हुए थे, तब 70 क्विंटल लकड़ी तो मिली, किन्तु एक भी लकड़ी चोर या अपराधी सी.ओ. साहब के हाथ न आ सका जबकि डी.एफ.ओ ने नजीबाबाद के मेहरुद्दीन, सैदाबाद के मुस्तफा, हबीबपुर कुड़ी के अंकित, सरवट के शमी व यासीन सहित 17 लोगों के विरुद्ध मीरापुर थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी। चोरी की लकड़ी बरामद करने वाले सी.ओ. को चोरी में संलिप्त होने या लापरवाही बरतने पर शासन ने उन्हें निलंबित कर दिया।
वन दरोगा तथा क्षेत्राधिकारी आरिफ जमाल खां के निलंबन से सिद्ध होता है कि वन की सुरक्षा तथा वनों के विस्तार के लिए तैनात किये कर्मी व अधिकारियों की मिलीभगत से ही वन्य संपदा का दोहन होता है। वृक्षों की कटाई व चोरी में विभागीय संलिप्तता आश्चर्यजनक है किन्तु खेद का विषय है कि निलंबित वन अधिकारी अन्ततः बहाल हो जाते हैं और चोर माफिया वकीलों-अदालतों की कृपा से बच निकलते हैं।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’
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