इस आलेख को कालिदास के मेघदूत से आरम्भ करें या विद्यापति अथवा फणीश्वरनाथ रेणु के मैला आंचल और ओजस्वी रामधारी सिंह 'दिनकर' की ललकार या बाबा नागार्जुन से। प्रशोक महान् चाणक्य चन्द्रगुप्त से भी शुरु कर सकते हैं। भगवान महावीर और गुरु गोबिन्द सिंह तथा स्वामी सहजानन्द सरस्वती से भी जोड़ सकते हैं। क्या नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को देखें या ढाका से कंधार तक मार्ग बनाने वाले शेरशाह सूरी को याद करें, मगफूर अहमद अजाज़ी भी इसी बिहार में हुए और कुंवर वीर सिंह भी। संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष बाबू सच्चिदानंद सिन्हा भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्र प्रसाद, प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, सत्येंद्र नारायण सिंह, ठाकुर युगल किशोर सिंह, सीजेआई भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा, कितने नाम गिनाये जायें? मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम, शिवसागर रामगुलाम, नेपाल के प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला, इसी बिहारी माटी के सपूत थे। बाबू जगजीवन राम, बलिराम भगत, तारकेश्वरी सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर तो अभी के न भुलाने वाले नाम हैं। राजनीति, साहित्य, संस्कृति, संगीत, मीडिया, फिल्म, शिक्षा, गणित, कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं जिसमें बिहार के सितारे न चमकते हों।

फिर लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति से निकले दो यादवों ने बिहार तथा उत्तर प्रदेश की दिशा और दशा बदल दी। जिस दुर्दान्त बाहुबली ने तीन सगे भाइ‌यों में से दो को तेजाब उड़ेल कर मार डाला, तीसरे को गोलियों से भूना, 'हिन्दुस्तान' के ब्यूरो चीफ को उसके कार्यालय में घुस कर गोली से उड़ा‌या, बिहार में जंगल राज की स्थापना की, उस शहाबुद्दीन को लालू प्रसाद ने राजनीति का मोहरा बना दिया। तेजस्वी ने रिहाई पर जेल के फाटक खुलवायें, बैंडबाजे बजवाये, आतिशबाजी की, एक हजार वाहनों के साथ उसका जलूस निकाला। लालू के लाल ने उसके बेटे को चुनाव में उतारकर जंगलराज की वापसी का प्रबंध किया।

तेजस्वी ने प्लेट में मछली रख कर फोटो खिंचाया, राहुल ने तालाब में कूदकर मछली पकड़ने का फोटो खिंचाया। राहुल ने लालू प्रसाद के घर जाकर मांस बनाने की ट्रेनिंग ली। बिहार के लोगों ने ये सभी वीडियो देखें। वोट चोरी के नारे भी सुने, समझें और राहुल की गाली ब्रिगेड की करतूतें भी देखीं। नरेंद्र मोदी बिहार गये तो तीजन बाई के स्वास्थ का पता किया। सहित्यकार से फोन पर हालचाल जाना। छठ मैया का जयकारा लगाया। दूसरी ओर लालू यादव, राबड़ी देवी ने पुत्रियों सहित परिवार के दोनों बेटों को जीतने का आशीर्वाद देकर लोकतंत्र के नाम पर खानदानी शासन स्थापित करने का आशीर्वाद दिया। 3 करोड़ नौकरियों का झांसा धरा रह गया।

तेजस्वी-राहुल के सारे चुनावी हथकंडे-छल-प्रपंच, झूठ को बिहारियों ने नाकाम कर दिया। जातिवाद‌ का दांव बिहार में फेल हो गया। एम.के. स्टालिन, रेवंत रेड्डी न हिन्दु‌ओं को नहीं भटका सके, न मुस्लिमों को अटका सके। बिहार का संदेश पूरे देश में फैलेगा। राजनीति की नयी दिशा तय करेगा। यह जीत बिहारियों की बुद्धिमत्ता, समझदारी और हौसले की जीत है। लोकतंत्र को मजबूत करने का दृढ़ संकल्प है। सीमांचल में जो हुआ और होगा, उसकी ओर भी इशारा है। भारत की राजनीति बिहार के चुनाव परिणामों से निर्देशित होगी।

गोविंद वर्मा (संपादक 'देहात')