देश में एक दौर ऐसा भी आया था जब यह गिना जाता था कि अमुक प्रदेश में गरीबी और कर्ज अदा न कर पाने के कारण इतने किसानों ने आत्महत्या कर ली। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थीं, वहां एनडीए के नेता और जहां एनडीए की सरकारें हैं, वहां कांग्रेस के नेता किसानों की खुदकुशी पर एनडीए सरकारों पर भड़कते थे। कर्जग्रस्त किसानों की आत्महत्याओं की दुखद घटनाओं में कमी नहीं आना चिंता का विषय है।
अभी 22 सितंबर को बिजनौर जिले के ग्राम सब्दलपुर में दलित किसान भूदेव ने कर्जदारों से तंग आकर फांसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। भूदेव ने मोटर साइकिल खरीदने के लिए फाइनेंस कम्पनी से 50 हजार रूपये का कर्ज लिया था, जिसे वह अदा नहीं कर पा रहा था। उसके पास मात्र 3 बीघा जमीन थी, जिससे परिवार का पालन पोषण नहीं हो पा रहा था। भूदेव ज़मीन बेच कर कर्ज अदा करना चाहता था किन्तु भूमि का सौदा न होने से कर्ज की अदायगी न हो पाई। फाइनेंस कंपनी के कर्मचारियों की प्रताड़ना से तंग भूदेव ने मौत का रास्ता चुना।
भूदेव अनुसूचित जाति का सीमान्त किसान था। संभव है यह 3 बीघा जमीन उसे पट्टे पर मिली हो। ऐसी स्थिति में न वह किसान रहा न मजदूर। आज किसान की परिभाषा बदल गई है, भले ही उसे अन्नदाता पुकारा जाता हो। जिस के पास ट्रैक्टर-ट्रॉली हो, मजबूत लाठियां हो, जो थाने में घुस कर वहां अपने ढोर-डंगर बांध सकता हो, घेराव करने और 10-20 दिन लंगर चलाने की ताकत व हैसियत रखता हो, वह शख्स किसान की श्रेणी में आयेगा। बाकी तो खेतिहर मजदूर से भी बुरी स्थिति के किसान हैं, जिनका प्रतिनिधित्व दलित भूदेव करता था।
दुर्घटना में मृत किसान को 5 लाख रुपये तक की सहायत का प्रावधान है किन्तु गरीब भूदेव के पीड़ित परिवार की मदर कौन करेगा। रोज रोज धरना-प्रदर्शन और घेराव करने वाले किसान नेता में से कोई भी सब्दलपुर नहीं पहुंचा। जय भीम के नारे लगा कर दलितों व अनुसूचित जाति के लोगों को थोकबन्द कर समाज में टकराव का माहौल बनाने में अग्रणी नेता भी भूदेव के परिवार की सुध लेने नहीं पहुंचा। सरकारी मशीनरी से क्या कुछ उम्मीद की जाए?
उत्तरप्रदेश के कौशल विकास राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल, जो बिजनौर जनपद के प्रभारी मंत्री भी हैं, से हमारा निवेदन है कि वे भूदेव के परिवारजनों के भरण-पोषण का स्थायी प्रबंध कराने की कृपा करें। किसान हित का झंडा और डंडा उठाने वाले किसान नेताओं से भी अपेक्षा है कि वे भूदेव के परिवार की व्यक्तिगत तौर पर कुछ मदद करेंगे, भले हरी भूदेव बिना ट्रैक्टर-ट्रॉली वाला किसान रहा हो।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’