लद्दाख की आग !

24 सितंबर को लद्दाख के लेह में पूरी तैयारी के साथ हिंसा, पथराव, आगजनी से विध्वंस मचाने का प्रयास किया गया, उसपर देश भर में चर्चा शरू हो गई है। लद्दाख के उप राज्यपाल कवींद्र गुप्ता ने कहा कि हिंसक प्रदर्शनकारी छात्र पूरी तैयारी से सड़कों पर उतरे थे। उनका इरादा लेह को पूरी तरह से तबाह करने का था। सोशल एक्टिविस्ट और विदेशी एन.जी.ओज से मदद लेने वाला माइक पर आकर छात्रों को भड़का रहा था और कह रहा था कि जब श्रीलंका बांग्लादेश व नेपाल के छात्र सड़कों पर आकर सरकारों का तख्ता पलट सकते हैं तो लद्दाख की युवाशक्ति क्या नहीं कर सकती। उप राज्यपाल ने कहा कि हमारे पास वांगचुक के भड़काऊ भाषणों और उसकी हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के पक्के सबूत है। लेह की काठमांडो की तरह भस्म करने के लिए यहां बाहर से भी कुछ लोग आये थे, जिसकी जांच की जा रही है।

इधर जम्मू-कश्मीर के पूर्व पुलिस महानिदेशक एस.पी. वैद ने साफ-साफ कहा वांगचुक कांग्रेस के हाथों में खेल रहा है। वह 24 सितंबर की आगजनी व पथराव को युवाओं की क्रांति की कामयाबी बता रहा। श्री वैद ने कहा कि जब लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने व अन्य मुद्दों पर गृह मंत्रालय ने वार्ता के लिए 6 अक्टूबर को जन प्रतिनिधियों को दिल्ली बुलाया गया था तो वांगचुक व उसके लोगों ने इतनी व्यापक हिंसा क्यों भड़काई? पूर्व डीजीपी ने कहा कि 24 सितंबर की हिंसा में आगजनी के दौरान जो वीडियो वायरल हुए उनमें एक ऐसे युवा कांग्रेस कार्यकर्ता का चेहरा भी सामने आया जो राहुल गांधी के इर्द-गिर्द रहता है और राहुल के साथ उसके फोटो भी हैं। श्री वैद ने कहा कि उपद्रवियों ने लद्दाख स्वायत्त विकास पर्वतीय परिषद कार्यालय व भाजपा कार्यालयों को ही नहीं फूंका अपितु सीआरपीएफ महानिदेशक के वाहन पर पथराव किया तथा सुरक्षाबलों के दर्जनों वाहन और अन्य दूसरे कार्यालय फूंक डाले। पूर्व डीजीपी ने कहा कि सदा शान्त रहने वाले लद्दाख में साजिशों का दौर खत्म होना चाहिए क्योंकि यह विदेशी सीमाओं से जुड़ा क्षेत्र है।

इस बीच जयराम रमेश ने दिल्ली में कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस में कह दिया कि राहुल गांधी के पास वोट चोर का मिनी हाइड्रोजन बम के अलावा और भी बड़े-बड़े बम हैं। देखना होगा कि ये बम भाजपा नेता-कार्यकर्ताओं पर पड़ेंगे या पूरे देश में नेपाल की तरह आग लगायेंगे। भाजपाई अपनी रक्षा करें या न करें लेकिन इन बमों की लपटों से देश का अहित नहीं होना चाहिए।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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