कन्नौज के धरनीधीरपुर नगरिया ग्राम में दबंगई की राजनीति करने वाले हिस्ट्रीशीटर अशोक यादव उर्फ मुन्ना यादव और उसके नाबालिग बेटे अभयराज की गोलियों के शिकार, मुजफ्फरनगर जिले के ग्राम शाहडब्बर का बहादुर बेटा सचिन राठी शेर की तरह आगे बढ़ते हुए शहीद हो गया। शाहडब्बर में विशाल शोकाकुल भीड़ के बीच सचिन पंचतत्व में विलीन हो गया।
सदियों से चले आ रहे रीति-रिवाजों के मुताबिक दिल दहलाने वाले हादसे के बाद शोक-संवेदना प्रकट करने आये नाते- रिश्तेदार, सगे-संबंधी, नेतागण सब अपने-अपने घरों को वापस लौट गए। सचिन की तेहरवीं पर एक बार फिर भीड़ जुटेगी। नेता परिजनों की सहायता, नौकरी देने की एक बार फिर मांग करेंगे। इससे अधिक कोई कर भी क्या सकता है ? यह तो जग की रीत है !
बलिदानी सचिन के सुनसान मकान पर पिता वेदपाल, माँ गीता, बहिन अंशु और भाई जतिन ज़िदगी भर आंसू बहाने के लिए रह जायेंगे। और ये कोमल देशवाल, जिसकी 13 अक्टूबर को सचिन के साथ सगाई हो चुकी थी और 5 फरवरी को दोनों के पति-पत्नी के रूप में बसेड़ा में फेरे होने थे, उस अभागी बालिका का क्या होगा? वह न ब्याही है, न विधवा ! उसकी अंतर्वेदना और दुःख के सागर को नापने का कोई पैमाना संसार में नहीं है। डर लगता है कि निष्ठुर संसार कहीं कोमल को जीवन भर रोने बिलखने के लिए नियति के सहारे न छोड़ दे।
धरनीधीरपुर की मनहूस घटना से कुछ बिन्दु उमरते हैं। सचिन कर्त्तव्यनिष्ठ न होता तो सिंह के समान आगे न बढ़ता। उसकी टीम कायर या निहत्थे लोग थे, जो हिस्ट्रीशीटर की गोलियों के सामने गीदड़ बने नज़र आये। सचिन का खून बहता रहा, उसे आगे बढ़ कर बचाने की कोशिश न हुई। कन्नौज के एस.पी. अमित कुमार आनन्द के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि पुलिस टीम को नियमानुसार पूरी तैयारी के साथ धरनीधीरपुर क्यूं नहीं भेजा गया?
बिकरू की दुर्घटना के बाद सरकार, गृह विभाग व पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को अपनी आंखें खुली रखनी चाहिएं थीं क्यूंकि योगी ने गुण्डामुक्त उत्तर प्रदेश का अभियान चला रखा है।
गोविन्द वर्मा