भारत में गांव-गांव तक एक कहावत प्रचलित है- 'आ, बैठ, पी पानी, ये तीन चीज मोल नहीं लानी' यानी आपके दरवाजे पर कोई भी आये, उसके आगमन का स्वागत करिये, आदर के साथ उसे बैठाइये, ठंडा पानी पिलाइये क्यूंकि इन तीनों को कहीं से खरीदना नहीं पड़ेगा। यह प्राचीन अतिथि सत्कार परम्परा है। जो आज भी प्रचलित है, भले ही उसमें शन: शनः कमी आ रही हो।
हमने बचपन में कई स्थानों पर प्याऊ लगे देखे। पहले प्याऊ पर जल सेवा करने वाले पानी पीने वाले व्यक्ति को ओक से (चुल्लू से) पानी पिलाने से पूर्व गुड़ की एक छोटी सी डली देते थे क्यूंकि खाली पेट ठंडा पानी वर्जित माना जाता था। अब यह परम्परा पूर्णतः लुप्त हो चुकी है, संभवतः पूर्वांचल में न्यूनाधिक रूप में प्रचलित हो। पता नहीं।
मुजफ्फरनगर कचहरी में हीरा चौधरी ने कई दशकों तक बरगद की शीतल छाँव है तक भरपूर जलसेवा की। विशाल बरगदर तले हीरा चौधरी के हाथों का कुएं का ठंडा जल पी कर प्रतिदिन सैकडों वकील और हजारों मवक्किल (वादकारी) तृप्त हो जाते थे। शहर में कुछ बड़े कुएं थे जहां डोल रखे रहते थे। राहगीर कुएं से पानी भरकर खुद प्यास बुझाते थे। अबूपुरा में मराठा काल का बड़ा कुआँ था जिसमे अब ऊपर तक कचरा भरा हुआ है। नगर के हृदय स्थल शिव चौक के उत्तर में एक प्याऊ था। अंगूरी टावर में भी ये प्याऊ दशकों तक चला। व्यवसाहिक दौड़ में दोनों ख़त्म हो गए।
कालांतर में शहर के प्रायः सभी कुएं ख़त्म हो चुके हैं और हैंडपंप का युग शुरू हो गया। नगर के प्रमुख समाजसेवियों तथा सामाजिक संस्थाओं ने हाथ से चलने वाले नल लगवाये, रोटरी क्लब इंटरनेशनल के डिस्ट्रिक्ट 310 के गवर्नर बाबू कृष्णगोपाल अग्रवाल ने जिला अस्पताल मुजफ्फरनगर परिसर में बाहर की ओर प्याऊ बनवाया था जो अब अस्पताल में भीतर स्थानांतरित हो गया है। एडवोकेट जमील अहमद अंसारी रोड़ स्थित अपने आवास के मुख्य द्वार पर प्रतिवर्ष ठंडे पानी का प्याऊ लगवाते हैं। समय परिवर्तन के साथ-साथ जलसेवा का रूप और दायरा भी परिवर्तित हो रहा है। शहीद भगतसिंह एकता मंच के नौजवान सदस्य कई दशकों से मुज़फ्फरनगर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्मों पर जल सेवा करते चले आ रहे हैं। कुछ बुजुर्ग साहबान भी स्टेशन पर ग्रीष्मकाल में रेल यात्रियों को शीतल जल उपलब्ध कराते हैं। प्रतिदिन 6 हजार रूपये मूल्य की बर्फ की सिल्लियां लग जाती हैं।
श्री गुरु सिंह सभा तथा शहरे के गुरुद्वारे विशेष मौकों पर शीतल जल व मीठे शर्बत की छबीलें लगाते हैं। आचार्यकुल व इंटरनेशनल गुडविल सोसाइटी ने जिला अस्पताल में वाटर कूलर लगवाये हैं। नगरपालिका परिषद, रोटरी व लायंस क्लब एवं अन्य समाजसेवी संस्थाओं ने सार्वजनिक स्थलों पर वाटर कूलर की सुविधा उपलब्ध कराई है। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम का परिचालक राजपाल 15 वर्षों से बस यात्रियों को ठंडा पानी पीला कर पुण्य कमा रहा हैं।
इस जल सेवा का नकारात्मक रूप भी सामने आया है। सार्वजनिक हैंड पम्पों के हत्थे लोग निकाल कर ले गए। वे कौन हैं? कहीं-कहीं तो नल की डोलची भी चुरा ली गई। पाइप या नाल उखाड़ी नहीं जा सकती थी, इसकी मज़बूरी थी। सार्वजनिक नलों की टोंटी तक तोड़ी गईं और पानी पीने के बाद उसे बन्द करना उचित नहीं समझा गया। कीमती पानी व्यर्थ बहता रहता है। शहर के पूर्व विधायक केशव गुप्ता जी के बेटे और पूर्व डिप्टी डायरेक्टर रह चुके वरुण गुप्ता जी का जीवनभर शगल रहा, टोंटी से पानी बहते देखा तो फट से टोंटी बन्द कर दी। यही स्थिति वाटर कूलरों के साथ है। पानी पीने वाला टोंटी खुली छोड़ जाता है। उसकी सोच यह है कि जिसने वाटर कूलर लगवाया है, पानी बन्द करने की जिम्मेदारी भी उसी की ही है।
एक उदाहरण कचहरी का देना चाहेंगे। कुछ वर्ष पूर्व एडवोकेट होतीलाल शर्मा ने एक बड़ा मटका और पानी निकाल कर पीने की हत्थी लगी लुटिया की अपनी सीट पर व्यवस्था की। कचहरी वालों ने कई दिन ठंडे पानी का लाभ उठाया। तब उनकी सीट खुली हुई थी। दरवाजा नहीं था। एक दिन रात में कोई लुटिया उठा कर ले गया । शर्मा जी दूसरे दिन नई लुटिया ले आए। अगले दिन कचहरी आए तो देखा लुटिया फिर गायब है और मटका चूर-चूर हुआ पड़ा है।
इन परिस्थितियों में जो सज्जन व संस्थायें जल सेवा के पुनीत कार्य में जुटे हैं, उनकी सकारात्मक सोच और सेवाभावना को हमारा प्रणाम।
गोविन्द वर्मा