बावरिया कॉलोनी के शिल्पकार को क्यूं भुला दिया?

गत 31 अगस्त को विमुक्त जाति दिवस पर राजधानी लखनऊ में आयोजित एक सम्मेलन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घुमंतू एवं विमुक्त जातियों के कुछ विशिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी ने घोषणा की कि सदियों से उपेक्षित इन जातियों के कल्याण के उद्देश्य से राज्य सरकार एक बोर्ड का शीघ्र गठन करेगी। साथ ही श्री योगी ने यह भी याद दिलाया कि उपेक्षित और जरायम पेशा कही जाने वाली ये जातियां विदेशी आक्रांताओं, मुगलों व अंग्रेजों से कैसे वीरतापूर्वक लडी थी यही कारण है कि अंग्रेजों ने इन जातियों को प्रताड़ित करने के लिए सन् 1871 में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाया। अग्रेजों के षडयंत्र के कारण नट, बंजारा, बावरिया, सांसी, कंजर, कालबेलिया, सपेरे, जोगी आदि घर-जमीन से बेघर होकर समाज से अलग-थलग पड़ गए। स्वतंत्रता के बाद बाबा साहब अंबेड‌कर ने केन्द्र के कानून मंत्री के रूप में सन् 1952 में अंग्रेजों के काले कानून से इन्हें मुक्ति दिलाई।

मुख्यमंत्री जी ने घुमंतू एवं विमुक्त जातियों की परिस्थितियों एवं उनके कल्याण के ‘शामली मॉडल’ तथा वनगांटिया का उल्लेख भी किया। शामली मॉडल से उनका तात्पर्य मुजफ्फरनगर की बावरिया कॉलोनी से रहा होगा।

शामली मॉडल या बावरिया कॉलोनी का नाम सामने आते ही एक और नाम स्वतः ही इससे जुड़ जाता है। यह नाम है मुजफ्फरनगर के जिला अधिकारी रहे आईएएस अधिकारी डॉ. योगेन्द्र नारायण का। भारतीय प्रशासनिक सेवा उत्तीर्ण करने के बाद उनकी पहली तैनाती मुजफ्फरनगर के जिला अधिकारी के रूप में हुई। सन् 1973-76 के बीच डॉ. योगेन्द्र नारायण ने एक कुशल प्रशासक के साथ-साथ एक संवेदनशील सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी कार्य कर लाखों जिला वासियों के दिलों में स्थान बनाया। इस प्यार को डॉ. योगेन्द्र नारायण आज भी पहला प्यार कहते हैं।

मुजफ्फरनगर के जिला अधिकारी के रूप में डॉ. योगेन्द्र नारायण ने खुद को कचहरी, कलेक्ट्रेट या कार्यालय तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने जिले के ग्रामांचल का व्यापक दौरा किया। दूरस्थ स्थानों में अपने शिविर लगाये। पुरकाजी के गोरधनपुर जैसे पिछड़े इलाके में कैम्प लगा कर पिछड़ों, गरीबों और वंचितों की परेशानियों को जाना। तब शामली पृथक जिला नहीं बना था। बावरिया कॉलोनी तब मुजफ्फरनगर जिले में थी। जन संपर्क के दौरान वे उपेक्षित व तिरस्कृत बावरिया कॉलोनी भी पहुंचे। बावरिया जाति के स्त्री-पुरुषों, बच्चों की दीन हीन दिशा देख वे द्रवित हो गए। न स्कूल, न अस्पताल, न रोजगार का साधन! इस दुर्दशा के बावजू‌द पुलिस आये दिनों छापा मार कर लोगों को उठा लेती थी। एक बार तो मुंबई में पड़ी डकैती में बावरिया कॉलोनी के युवकों को उठा लिया गया। पुलिस फर्जी मुकदमे गढ़ने में हिचकती नहीं थी। यह एक प्रकार से नर्क जैसी स्थिति थी।

डॉ. योगेन्द्र नारायण ने फर्जी मुकदमों को रद्द कराया। बच्चों की पढ़ाई के लिए कॉलोनी में सरकारी पाठशाला खुलवाई, दो नलकूप स्थापित कराये। बेरोजगारी दूर करने के लिए बावरिया युवकों की निजी प्रतिष्ठानों में नौकरियां लगवाई। उन्होंने उन लोगों को बद‌नामी के कूप से खुले समाज में आने का आह्वान किया। डॉ. योगेन्द्र नारायण की व्यक्तिगत रुचि व सलंग्नता से बावरिया कॉलोनी में जागृति आई। उन्होंने जरायम से मुंह मोड़ा और सकल समाज के अंग बनकर रहने का सफल प्रयास किया। बावरिया कॉलोनी में साक्षरता बढ़‌ने के साथ ही बेरोजगारी भी दूर हुई।आज वहां कोई भी वयस्क बेरोजगार नहीं है। लोग आज भी डॉ. योगेन्द्र नारायण को भगवान मानकर पूजते हैं। कई घरों में उनकी फोटो आज भी लगी हुई है।

बावरिया कॉलोनी की तकदीर बदलने में सामाजिक कार्यकर्ता और वकील भगवत सिंह कश्यप का सह‌योग और निःस्वार्थ सेवा को भी नहीं भुलाया जा सकता। बावरिया कॉलोनी के सुधार और विकास के लिए एक समन्वयक के रूप में श्री कश्यप सतत क्रियाशील रहे।

डॉ. योगेन्द्र नारायण ने न केवल बावरिया कॉलोनी की द‌शा व दिशा बदली बल्कि पुरकाजी के खादर क्षेत्र के भूमिहीन लोगों, मजदूरों तथा बेसहारा लोगों को ठिकाना व रोजगार देने की दिशा में काम किया। एक सामाजिक कार्यकर्ता (नाम भूल रहा हूं) ने योगेन्द्रनगर की स्थापना करा के निराश्रितों को छत व रोजगार देने का प्रयास किया। डॉ. योगेन्द्र नारायण विभिन्न उच्च पदों पर रहते हुए सेवा निवृत हो गए किन्तु मुजफ्फरनगर वासी उन्हें भूल नहीं पाए है। वे जब भी मुजफ्फरनगर आते हैं तब तब बावरिया कॉलोनी के लोग उनसे मिलने जरूर आते हैं।

डॉ. योगेन्द्र नारायण उत्तरप्रदेश में मुख्य सचिव, केन्द्र में रक्षा सचिव, राष्ट्रीय राष्ट्र मार्ग प्राधिकरण के चेयरमैन व राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल पद पर रहे। उनका सेवा काल श्रेष्ठ व प्रशंसनीय रहा। बावरिया कॉलोनी को मुख्यमंत्री जी मिसाल के रूप में प्रस्तुत करते हैं किन्तु बावरिया कॉलोनी की काया कल्प कराने वाले को वे क्यों भूल गए? हमारा विचार है कि डॉ. योगेन्द्र नारायण के असाधारण योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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