उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि आज सरकार "लाचार" है क्योंकि एक न्यायिक आदेश एफआईआर दर्ज करने में रुकावट डाल रहा है। यदि कोई अपराध हुआ है, तो एफआईआर तुरंत दर्ज की जानी चाहिए थी, यह एक बुनियादी और प्राथमिक कदम था, जो पहले दिन उठाया जा सकता था। लेकिन एक पुराना न्यायिक आदेश अब तक इस प्रक्रिया में अवरोध बना हुआ है।
धनखड़ ने कहा कि मौजूदा स्थिति में, जब तक उच्चतम न्यायालय से अनुमति नहीं मिलती, एफआईआर दर्ज करना संभव नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर यह अनुमति नहीं दी जाती, तो इसका कारण क्या है? क्या न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव इस संकट का हल हो सकता है? उपराष्ट्रपति ने जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से नकदी मिलने के मामले का उल्लेख किया और इसे न्यायपालिका की छवि को गहरे आघात के रूप में देखा। उन्होंने पूछा, अगर यह मामला सामने नहीं आता, तो क्या हमें पता चलता कि ऐसे और मामले भी हो सकते थे?
धनखड़ ने इस संदर्भ में यह भी कहा कि जब नकदी मिलती है, तो यह जानना जरूरी है कि वह पैसा किसका है, उसकी मनी ट्रेल क्या है, और क्या उसने न्यायिक फैसलों को प्रभावित किया है? उन्होंने न्यायिक समितियों की भूमिका पर भी सवाल उठाया, और पूछा कि क्या ये समितियां संवैधानिक या वैधानिक मान्यता प्राप्त हैं? क्या यह एफआईआर या न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया का विकल्प हो सकती हैं?
उन्होंने देशभर की बार एसोसिएशनों की सराहना की और कहा कि यह संतोषजनक है कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वकील कानून के शासन के संरक्षक होते हैं और जब न्याय प्रणाली संकट में हो, तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। केवल निष्पक्ष और गहन जांच से ही जनता का विश्वास बहाल किया जा सकता है। यदि लोकतंत्र में कुछ लोग कानून से ऊपर माने जाने लगें, तो यह पूरे तंत्र के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
धनखड़ ने स्पष्ट किया कि वह किसी को दोषी नहीं ठहरा रहे हैं, लेकिन यह आवश्यक है कि जांच की जाए। उन्होंने 1957 के सरवान सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि सच्चाई और अनुमानित सच्चाई के बीच अंतर केवल विश्वसनीय साक्ष्यों से ही स्पष्ट किया जा सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि न्यायिक निर्णयों में पैसे का प्रभाव पड़ने लगे, तो यह दिन देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
धनखड़ ने कहा कि जब जनता का अन्य संस्थाओं से विश्वास उठता है, तो भी वे न्यायपालिका की ओर आशा से देखती हैं। उन्होंने कहा कि हमारे न्यायाधीशों की बुद्धिमत्ता और परिश्रम अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन अगर वही संदेह के घेरे में आ जाएं, तो लोकतंत्र की नींव हिल सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि यह सोचना कि मीडिया का ध्यान हटने पर मामला ठंडा पड़ जाएगा, एक बड़ी भूल होगी। इस अपराध के लिए जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने इस मौके पर कहा कि वह पूर्व मुख्य न्यायाधीश का आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया। उन्होंने कहा कि हमें लोकतंत्र की सोच को खत्म नहीं करना चाहिए और नैतिकता और ईमानदारी को बचाए रखना चाहिए। साथ ही, उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की बार एसोसिएशन पूरे देश में विशेष स्थान रखती है और यह दो राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण है।