नई दिल्ली: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम से गांधी का नाम हटाए जाने को लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने इसे महात्मा गांधी की “दूसरी हत्या” करार देते हुए कहा कि नए कानून के जरिए न केवल गांधी की स्मृति को कमजोर किया गया है, बल्कि ग्रामीण गरीबों के रोजगार अधिकारों पर भी सीधा प्रहार किया गया है।
चिदंबरम ने कहा कि 18 दिसंबर को संसद से पारित ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ विधेयक, जिसे वीबी-जी राम जी नाम दिया गया है, अब करीब 20 साल पुराने मनरेगा कानून की जगह लेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि यह बदलाव बिना व्यापक बहस के किया गया और इससे ग्रामीण रोजगार की कानूनी गारंटी कमजोर हो गई है। कांग्रेस नेता ने स्पष्ट किया कि पार्टी इस कानून का विरोध जारी रखेगी। उल्लेखनीय है कि रविवार को राष्ट्रपति ने भी इस विधेयक को मंजूरी दे दी।
‘गांधी और नेहरू को आदेश से नहीं मिटाया जा सकता’
चिदंबरम ने कहा कि महात्मा गांधी की पहली हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई थी और अब उनकी विरासत को मिटाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि गांधी और नेहरू को किसी सरकारी अधिसूचना से नहीं हटाया जा सकता। वे देश की चेतना में उसी तरह जीवित हैं, जैसे बुद्ध और यीशु।
अधिकार से योजना तक का सफर
कांग्रेस नेता ने कहा कि मनरेगा मांग आधारित कानूनी अधिकार था, जिसमें काम मांगने पर सरकार को रोजगार देना अनिवार्य था। नए कानून में यह प्रावधान समाप्त हो गया है और अब रोजगार देना सरकार के विवेक पर निर्भर करेगा। उन्होंने आशंका जताई कि इसका सबसे अधिक असर ग्रामीण गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों और महिलाओं पर पड़ेगा।
नाम और दायरे पर भी सवाल
चिदंबरम ने योजना के नए नाम पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी लिपि में लिखे गए हिंदी नाम दक्षिण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रम पैदा कर सकते हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह योजना अब पूरे देश में लागू नहीं होगी, बल्कि केवल केंद्र सरकार द्वारा चुने गए जिलों तक सीमित रह सकती है।
बजट कटौती और राज्यों पर बढ़ता बोझ
पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि पहले केंद्र सरकार मजदूरी का पूरा खर्च और सामग्री लागत का 75 प्रतिशत वहन करती थी, जबकि नए कानून में राज्यों पर अधिक वित्तीय भार डाला गया है। उन्होंने बताया कि योजना का बजट लगातार घटा है—चार वर्ष पहले जहां आवंटन 1.11 लाख करोड़ रुपये था, वह अब 65 हजार करोड़ रुपये रह गया है। चिदंबरम ने चेतावनी दी कि यदि राज्यों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं होंगे तो यह योजना कागजों तक ही सिमट कर रह जाएगी।