नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने दुष्कर्म के एक विवादित मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए 10 साल की सजा काट रहे आरोपी की दोषसिद्धि और सजा दोनों को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला सहमति से बने रिश्ते का था, जिसे गलतफहमी के कारण आपराधिक रूप दे दिया गया।

यह निर्णय उस अपील पर आया, जिसमें आरोपी ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के अप्रैल 2024 के आदेश को चुनौती दी थी। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए 10 साल का कारावास और 55 हजार रुपये जुर्माना सुनाया था। हाईकोर्ट ने सजा निलंबन की याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां पूरी समीक्षा के बाद यह अहम फैसला लिया गया।

‘छठी इंद्रिय’ से समाधान
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया, तो तथ्यों का अध्ययन करने पर यह महसूस हुआ कि दोनों पक्षों को फिर से साथ लाया जा सकता है। अदालत ने आरोपी और महिला से उनके माता-पिता की मौजूदगी में बातचीत करवाई, जिसके बाद दोनों ने जुलाई 2025 में विवाह कर लिया।

एफआईआर क्यों दर्ज हुई?
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, आरोपी और महिला की पहली मुलाकात 2015 में सोशल मीडिया पर हुई थी। दोनों के बीच आपसी पसंद और सहमति से शारीरिक संबंध बने। महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी ने शादी का झूठा वादा किया। बार-बार शादी की तारीख टलने से महिला में असुरक्षा की भावना पैदा हुई और नवंबर 2021 में FIR दर्ज कराई गई

संपूर्ण मामला समाप्त
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए FIR, ट्रायल कोर्ट का फैसला और सजा सभी को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि यह दुर्लभ मामला है, जिसमें पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए यह विशेष अधिकार इस्तेमाल किया गया। चूंकि दोनों अब शादीशुदा हैं और साथ रह रहे हैं, इसलिए आपराधिक कार्यवाही जारी रखने का कोई औचित्य नहीं रहा।

निलंबन हटाने और वेतन भुगतान का आदेश
अदालत ने यह भी ध्यान में रखा कि आरोपी को आपराधिक मामले के कारण नौकरी से निलंबित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सागर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को निर्देश दिया कि आरोपी का निलंबन रद्द किया जाए और उसे बकाया वेतन का भुगतान किया जाए। साथ ही हाईकोर्ट में लंबित अपील को भी निष्प्रभावी करार दिया गया।