चंडीगढ़। केंद्र सरकार जल्द ही संसद के शीतकालीन सत्र में संविधान (131वां संशोधन) विधेयक-2025 पेश करने की तैयारी कर रही है, जिसके तहत चंडीगढ़ में अलग प्रशासक नियुक्त किया जा सकेगा। वर्तमान में पंजाब के राज्यपाल ही इस संघ शासित क्षेत्र (यूटी) के प्रशासक होते हैं। नया संशोधन बिल पारित होने के बाद राष्ट्रपति को सीधे कानून बनाने का अधिकार होगा और चंडीगढ़ को अनुच्छेद-240 के दायरे में शामिल किया जाएगा, जैसा कि अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में होता है।

सियासी विवाद और पंजाब का विरोध

इस प्रस्ताव के सामने आने के बाद पंजाब में सियासी हंगामा शुरू हो गया है। सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और शिअद ने इस बिल का विरोध जताया है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि यह संशोधन पंजाब के हितों के खिलाफ है और केंद्र सरकार की मंशा चंडीगढ़ पर पंजाब का नियंत्रण कम करने की प्रतीत होती है।

मुख्यमंत्री मान ने कहा, “हमारे पंजाब के गांवों को उजाड़कर बने चंडीगढ़ पर सिर्फ पंजाब का हक है। हम इसे बिना संघर्ष के नहीं छोड़ेंगे और आवश्यक कदम उठाएंगे।”

ऐतिहासिक संदर्भ

केंद्र सरकार ने 1970 में चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने का प्रस्ताव सैद्धांतिक रूप से स्वीकार किया था। बाद में राजीव-लोंगोवाल समझौते (1986) के तहत समय सीमा तय की गई, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका। अब यदि यह संशोधन विधेयक पारित होता है, तो पंजाब का संवैधानिक अधिकार चंडीगढ़ पर कम हो जाएगा।

नेताओं की प्रतिक्रिया

  • प्रताप सिंह बाजवा, नेता प्रतिपक्ष, ने कहा कि यह बिल पंजाब की राजधानी पर ऐतिहासिक और भावनात्मक दावे को कमजोर कर सकता है।

  • कांग्रेस विधायक परगट सिंह का कहना है कि यह भाजपा का एजेंडा है, जिसके तहत चंडीगढ़ के प्रशासनिक ढांचे में बड़ा बदलाव होगा।

  • अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग, पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष, ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से स्थिति स्पष्ट करने की अपील की और चेताया कि चंडीगढ़ को छीनने की किसी भी कोशिश के गंभीर नतीजे होंगे।

  • सुखबीर सिंह बादल, शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष, ने कहा कि बिल पारित होने पर यह पंजाबियों के साथ धोखा और भेदभाव होगा और संघवाद की भावना के खिलाफ होगा।

कर्मचारी और प्रशासनिक समीकरण

वर्तमान में यूटी चंडीगढ़ में कर्मचारियों का अनुपात पंजाब 60% और हरियाणा 40% है। दोनों राज्यों से अधिकारी और कर्मचारी डेपुटेशन पर यहां काम करते हैं। संशोधन के बाद प्रशासक की शक्तियां अब पंजाब राज्यपाल के बजाय नए नियुक्त किए जाने वाले अलग प्रशासक के पास होंगी।