दिल्ली में वर्ष 2020 में हुए दंगों से जुड़े मामले में बंद शरजील इमाम, उमर खालिद, मीरान हैदर और गुल्फिशा फातिमा सहित अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई की। मामले की सुनवाई जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन. वी. अंजिरिया की बेंच ने की और दलीलें सुनने के बाद अगली सुनवाई 3 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी।

गुल्फिशा फातिमा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी करते हुए कहा कि फातिमा को जेल में बंद हुए पांच साल पांच महीने से अधिक हो चुके हैं, जबकि चार्जशीट सितंबर 2020 में दाखिल की गई थी। उन्होंने तर्क दिया कि पुलिस हर वर्ष पूरक चार्जशीट दाखिल कर रही है, जिससे मुकदमे की प्रक्रिया लंबी खिंचती जा रही है। सिंघवी ने यह भी कहा कि फातिमा एक महिला हैं और समानता के आधार पर जमानत की हकदार हैं।

वहीं, उमर खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि दंगों के दौरान उमर दिल्ली में मौजूद ही नहीं था। उन्होंने कहा, “जब मैं घटना स्थल पर था ही नहीं, तो दंगों से मेरा क्या संबंध?” उन्होंने बताया कि इस मामले में 751 एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें से उमर को एक मामले में पक्षकार बनाया गया है।

शरजील इमाम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने कहा कि अभियोजन पक्ष को जांच पूरी करने में तीन साल का समय लग गया, और इसी कारण मुकदमे की सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी।

उधर, दिल्ली पुलिस ने अदालत में हलफनामा दाखिल करते हुए कहा कि 2020 का दंगा कोई आकस्मिक हिंसा नहीं थी, बल्कि केंद्र सरकार के खिलाफ राजनीतिक साजिश के तहत रची गई योजना थी। पुलिस ने दावा किया कि इसका उद्देश्य देश में अस्थिरता फैलाना और शासन परिवर्तन करना था।

इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन की आड़ में हिंसा और साजिश को स्वीकार नहीं किया जा सकता

फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अगली सुनवाई की तारीख 3 नवंबर निर्धारित की है।