नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के संकट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने कहा कि केवल मामले को सूचीबद्ध करने से ही वायु गुणवत्ता में सुधार नहीं आता, इसलिए इसे नियमित रूप से सुनवाई में शामिल किया जाना चाहिए। सीजेआई ने यह भी कहा कि दीर्घकालिक योजनाओं को सार्वजनिक करना और उन पर चर्चा कर अंतिम रूप देना आवश्यक है। अगली सुनवाई अब 10 दिसंबर को होगी।
सुनवाई में मुख्य बिंदु
अटॉर्नी जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि केंद्र ने शॉर्ट टर्म प्लान का शपथपत्र दाखिल किया है और सभी राज्यों व संबंधित एजेंसियों के साथ बैठकें की गई हैं। अदालत ने सवाल उठाया कि इन योजनाओं का वास्तविक असर क्या हुआ और कितनी प्रगति हुई है। सीजेआई ने कहा कि यह जानना जरूरी है कि अब तक कौन-कौन से कदम उठाए गए।
पराली जलाने का मुद्दा
एएसजी ने स्वीकार किया कि राज्यों का लक्ष्य 'शून्य पराली जलाना' था, लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। सीजेआई ने कहा कि पराली जलाना अकेला कारण नहीं है, और इसे राजनीतिक या अहं के मुद्दे के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने किसान की आर्थिक मजबूरी को भी रेखांकित किया।
प्रदूषण के अन्य स्रोत
भाटी ने आईआईटी की 2016 और 2023 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सबसे बड़ा योगदान वाहनों का है, उसके बाद धूल, निर्माण और औद्योगिक प्रदूषण आता है। अदालत ने निर्देश दिया कि एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पेश की जाए, जिसमें वाहन, निर्माण, धूल आदि से होने वाले प्रदूषण पर अब तक उठाए गए कदम और उनका असर स्पष्ट रूप से दिखाया गया हो।
अल्पकालिक उपायों की जरूरत
सुनवाई में एक वकील ने बताया कि दिल्ली की सड़कों पर दोनों तरफ वाहनों का खड़ा होना ट्रैफिक और प्रदूषण बढ़ाता है। सीजेआई ने कहा कि मेट्रो और अन्य लंबी अवधि की योजनाएं भविष्य में मदद करेंगी, लेकिन तत्काल प्रभावी अल्पकालिक उपाय भी जरूरी हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने साफ कहा कि यह मामला लंबित नहीं रहेगा और अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी, ताकि प्रदूषण नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें।