वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लेकर लोकसभा में हुई डिबेट के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने हरियाणा के यमुनानगर के जठलाना गांव में गुरुद्वारा कमेटी और वक्फ बोर्ड के बीच 14 मरले जमीन को लेकर जारी विवाद का जिक्र किया था. यमुनानगर के जठलाना गुरुद्वारा पर पिछले 58 साल से चल रहे विवाद में संसद में वक्फ बोर्ड बिल संशोधन पारित होने के बाद गांव के सिख और हिंदू समुदाय में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है. दरअसल मुस्लिम पक्ष और वक्फ बोर्ड की और से इसे मस्जिद बताया जाता है और मामला कोर्ट में है.
संसद में बुधवार को वक्फ बोर्ड बिल संशोधन के दौरान हरियाणा के यमुनानगर के जठलाना गुरुद्वारा का जिक्र हुआ. 1947 में भारत-पाक विभाजन के समय ये जगह पाकिस्तान से भारत आये मस्तान चंद और गोविंद लाल नाम के दो भाईयों को अलॉट की गई थी, जिन्होंने पहले अपने घर के अंदर ही एक छोटा गुरुद्वारा बनाया और बाद में इस जमीन को गांव की गुरुद्वारा कमेटी और पंचायत को सौंप दिया था.
यमुनानगर के जठलाना गांव में खुशी की लहर
लेकिन 1967 में वक्फ बोर्ड ने इस जमीन पर दावा कर दिया और तब से ये मामला अलग-अलग अदालतों में चल रहा है. इस वजह से गुरुद्वारा में विकास का कोई काम नहीं हुआ और ये खंडहर में तब्दील हो गया.
संसद में वक्फ संशोधन बिल पर बहस के दौरान केंद्र सरकार के दो मंत्रियों द्वारा इस विवाद का जिक्र होते ही इलाके के लोगों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी.
हालांकि मुस्लिम पक्ष अभी भी इस गुरुद्वारे की जमीन पर अपना हक जताता है और इसे मस्जिद बताता है. 1963-64 में वक्फ बोर्ड बनने के 3 साल बाद मुस्लिम पक्ष ने इस जमीन पर दावा ठोक दिया और इसे मस्जिद बताने लगे.
1967 से कोर्ट में चल रहा है विवाद
1967 से ये विवाद कोर्ट में चल रहा है. मामला लोअर कोर्ट से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया और बाद में ये पंचायती समझौता हुआ कि ये जगह हिंदू-सिख इलाके में है और इसे उन्हें दे दिया जाए.
गांव की पंचायत ने इस गुरुद्वारे की जमीन के बदले मुस्लिम पक्ष को गांव के ही बाहर उतनी ही जमीन देने का वादा भी किया, लेकिन समझौता आगे नहीं बढ़ पाया और गुरुद्वारे में कोई काम नहीं हो सका.
ग्रामीणों को कहना है कि मुस्लिम पक्ष इसी जमीन को लेने पर अड़ा है और मुस्लिम पक्ष द्वारा पंचायती समझौता भी खारिज कर दिया गया. जब भी गुरुद्वारा कमेटी या गांव की पंचायत द्वारा गुरुद्वारे में सुधार का कोई काम होता, मुस्लिम पक्ष के लोग पुलिस भेजकर उसे रुकवा देते हैं.
गांव के हिंदू और सिख पक्ष का कहना है कि गुरुद्वारा लंबे समय से स्थापित है, लेकिन यहां पर पानी का नल लगाने या लंगर हॉल का कोई काम मुस्लिम पक्ष द्वारा नहीं होने दिया जाता.
गुरुद्वारे की कमेटी और पंचायत से जुड़े सतीश कुमार, दावेंद्र चौहान और अन्य ग्रामीणों ने कहा कि ये केवल जठलाना में ही नहीं, बल्कि और भी कई जगहों पर वक्फ बोर्ड बेवजह दावा करता है. संसद में जो कुछ हुआ, उससे वे बेहद खुश हैं और उम्मीद है कि जल्द ही ये जगह स्थानीय लोगों को मिलेगी.
सरकार के फैसले से जगी आस
उनका कहना है कि अब जब सरकार ने फैसला ले लिया है, तो यहां पर हर सुविधा दी जाएगी. इन लोगों ने गुरुद्वारे की जमीन से जुड़े तमाम पुराने कागजात भी दिखाएं और कहा कि 1980 में कुरुक्षेत्र की कोर्ट से ये लोग केस जीत भी गए थे, लेकिन उसके बाद अलग-अलग अदालतों में वक्फ बोर्ड ने इस जमीन पर कब्जा लेने के लिए केस किया और फिलहाल भी यमुनानगर की कोर्ट में इस जमीन पर यथास्थिति बनाए रखने का केस पेंडिंग है.
इसी वजह से यहां पर कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता और वो चाहते हैं कि वक्फ बोर्ड संशोधन बिल जल्द से जल्द लागू हो और वक्फ बोर्ड के द्वारा जो बेवजह उनके गुरुद्वारे की जमीन हथियाने के लिए दावा किया जा रहा है वो खारिज हो.
मुस्लिम पक्ष ने रखा अपना तर्क, कही ये बात
साथ ही इन लोगों ने कहा कि आज तक मुस्लिम समाज का कोई भी व्यक्ति या वक्फ बोर्ड से जुड़ा अधिकारी यहां पर कभी नहीं आया और ना ही नमाज अदा करने के लिए कोई पहुंचा. 2022 में भी यहां पर वक्फ बोर्ड केस जीतने के बाद कब्जा लेने के इरादे से आना चाहता था, लेकिन तब भी कोई भी नहीं आया क्योंकि यहां पर कभी मस्जिद थी ही नहीं और शुरू से ही यहां गुरुद्वारा है.
दूसरी तरफ, मुस्लिम पक्ष के अब्दुल ने कहा कि मामला शुरू से ही उनके पक्ष में है और यहां पहले मस्जिद हुआ करती थी. ये जगह वक्फ बोर्ड के नाम पर है और फिलहाल मामला कोर्ट में चल रहा है. कोर्ट ने इस जगह पर स्टे भी लगा रखा है.
TV9 भारतवर्ष की टीम ने इस पूरे मामले को लेकर हरियाणा के अंबाला कैंट में स्थित हरियाणा वक्फ बोर्ड के दफ्तर से भी संपर्क किया, लेकिन वहां पर इस पूरे मामले की कानूनी पेचीदगियों को देखते हुए कोई भी बोलने को तैयार नहीं हुआ और अधिकृत अधिकारियों और पदाधिकारियों के उपलब्ध ना होने का हवाला दिया गया.