नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) के एक एचआईवी संक्रमित सिपाही को नौकरी में बहाल करने का अहम फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज 2016 (RPWD) अधिनियम के तहत दिव्यांग व्यक्ति की श्रेणी में आता है और उसे नौकरी में भेदभाव से सुरक्षा का अधिकार है।

अदालत ने BSF के 9 अप्रैल 2019 और 9 अक्टूबर 2020 के विवादित आदेश रद्द कर दिए और याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता वेतन निर्धारण सहित अन्य सभी लाभों का हकदार होगा, हालांकि पिछला वेतन उसे नहीं मिलेगा।

अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ ने कहा कि एचआईवी संक्रमित कर्मचारी लंबे समय तक शारीरिक कमजोरी से प्रभावित होता है, जो समाज में उसकी पूरी भागीदारी में बाधा डाल सकता है। ऐसे मामलों में यह व्यक्ति RPWD अधिनियम के तहत दिव्यांग माना जाएगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर कोई कर्मचारी मूल पद पर कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकता, तो उसे समकक्ष पद पर वैकल्पिक नियुक्ति दी जानी चाहिए। अगर कोई उपयुक्त पद तुरंत उपलब्ध नहीं है, तो उसे सुपरन्यूमेरी पद पर रखा जा सकता है।

मामले का विवरण
याचिकाकर्ता को अप्रैल 2017 में सिपाही के पद पर नियुक्त किया गया था। कुछ ही महीनों बाद वह एचआईवी पॉजिटिव पाया गया और उसने टीबी के इलाज के साथ एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी करवाई। इसके बाद BSF ने उसे “इम्यून कम्प्रोमाइज्ड स्टेटस” का हवाला देते हुए नौकरी से हटाने का प्रस्ताव रखा। अप्रैल 2019 में उसे सेवा से हटा दिया गया और अक्टूबर 2020 में अपील खारिज कर दी गई।

अदालत ने BSF के आदेशों को रद्द करते हुए कहा कि यह निर्णय RPWD अधिनियम और AIDS (Prevention and Control) Act 2017 का उल्लंघन करता है, जो एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों को केवल इस आधार पर नौकरी से हटाने की अनुमति नहीं देता।

पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए BSF में अपनी ड्यूटी से अयोग्य नहीं माना जा सकता कि वह एचआईवी संक्रमित है।