धर्मशाला में रात को भूकंप, विशेषज्ञों ने दी बड़े खतरे की चेतावनी

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला और आसपास के क्षेत्रों में सोमवार रात भूकंप के झटके महसूस किए गए। इसका केंद्र मैक्लोडगंज और खनियारा के बीच था। केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. अंबरीश कुमार महाजन ने बताया कि यह भूकंप एक अलार्म की तरह है और भविष्य में बड़े खतरे की ओर संकेत करता है।

उन्होंने कहा कि इस बार भूकंप की तीव्रता 4 मैग्नीट्यूड रही, लेकिन अगर यह एक-दो प्रतिशत भी ज्यादा होती तो धर्मशाला में भारी तबाही मच सकती थी। प्रो. महाजन ने याद दिलाया कि कांगड़ा क्षेत्र में भूकंप आना नई बात नहीं है। वर्ष 1968, 1970 और 1986 में यहां 5 मैग्नीट्यूड तक के भूकंप आए थे, लेकिन 1986 के बाद से अब तक धर्मशाला में ऐसा झटका नहीं आया।

मैक्लोडगंज क्षेत्र में निर्माण कार्यों पर चिंता
विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय से ऊर्जा का जमाव हो चुका है और मैक्लोडगंज इलाके में क्षमता से ज्यादा बहुमंजिला भवन बनाए जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में अगर भविष्य में बड़ा भूकंप आता है तो भारी नुकसान होना तय है। उन्होंने धर्मशाला और जोशीमठ की परिस्थितियों की तुलना करते हुए बताया कि जोशीमठ में दरारों में पानी भरने और सीवरेज सिस्टम न होने के कारण समस्या बढ़ी थी। धर्मशाला में भी ड्रेनेज और सीवरेज सिस्टम न होने की स्थिति में हालात बिगड़ सकते हैं। दलाईलामा निवास क्षेत्र में यदि सीवरेज की व्यवस्था नहीं हुई तो भारी तबाही संभव है।

धराली का उदाहरण और चेतावनी
प्रो. महाजन ने उत्तराखंड के धराली की घटना का हवाला देते हुए कहा कि वहां लोगों ने नदी का रुख बदलकर किनारों पर निर्माण कर लिया था। 1978 में आपदा आई, उसके बाद लोग निश्चिंत हो गए कि अब कोई खतरा नहीं है। लेकिन 2023 में कांगड़ा, चंबा और मंडी में बारिश से भारी तबाही देखने को मिली, जिसका एक बड़ा कारण सीवरेज सिस्टम की कमी भी रही।

उन्होंने कहा कि इस बार बादल फटने की घटनाएं अधिक हुईं और धर्मशाला की मनूणी खड्ड को बादल फटने के लिहाज से संवेदनशील माना जाता है। ऐसी स्थिति में यहां के निचले इलाकों को भारी क्षति हो सकती है।

निर्माण पर नियंत्रण की आवश्यकता
प्रो. महाजन ने कहा कि 60 और 70 के दशक में लगातार दो-दो महीने बारिश होती थी, जबकि अब बारिश कम हो गई है। इसके बावजूद शहरों में पानी इकट्ठा होने की समस्या बढ़ रही है क्योंकि उचित ड्रेनेज सिस्टम नहीं है। इसी वजह से कई जगह जमीन धंसने की घटनाएं सामने आती हैं।

उन्होंने बताया कि 1998 तक जिला प्रशासन की ओर से आदेश था कि क्षेत्र में होने वाले निर्माण कार्यों को उनकी स्वीकृति के बिना मंजूरी नहीं दी जाएगी। उस समय बहुमंजिला इमारतों पर नियंत्रण रखा गया था और केवल उन्हीं को अनुमति दी जाती थी जो सुरक्षा मानकों का पालन करते थे। लेकिन वर्तमान में बिना रोक-टोक तेजी से निर्माण हो रहा है, जो भविष्य के लिए गंभीर खतरे का कारण बन सकता है।

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