पहले दिन 370 पर बवाल, जम्मू-कश्मीर विधानसभा का विवादित शुभारंभ

नवगठित जम्मू-कश्मीर विधानसभा का छह साल से अधिक समय बाद पहला सत्र आयोजित किया जा रहा है और अपने दूसरे दिन 51 विधायकों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एक लिस्ट जारी की गई, जिसमें कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी भी शामिल है. वहीं, सत्र के पहले दिन अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया, जिसे मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आधारहीन करार दिया. जम्मू-कश्मीर विधानसभा का पहला सत्र ही विवाद की भेंट चढ़ रहा है.

पीडीपी विधायक रफीक नाइक ने सैयद अली शाह गिलानी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार करते हुए सदन को उन्हें पूर्व विधायक के रूप में याद रखना चाहिए.

विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राथर की ओर से जारी की गई कार्यसूची में गिलानी के अलावा सदन के पूर्व सदस्यों और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी, सोमनाथ चटर्जी और जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा ​​जैसे राष्ट्रीय नेताओं के नाम शामिल हैं. सैयद अली शाह गिलानी ने 1972, 1977 और 1987 में तीन बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सोपोर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

गिलानी ने 2004 में बनाई तहरीक-ए-हुर्रियत

जिस समय जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी हिंसा शुरू हुई, तो गिलानी अलगाववादियों के समर्थक बन गए और उन्होंने सार्वजनिक रूप से कश्मीर के पाकिस्तान में विलय की वकालत की. वे अलगाववादी समूह ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष भी रहे, जो 9 मार्च 1993 को गठित 26 राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक दलों का एक संयोजन था. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का स्पष्ट उद्देश्य कश्मीर में विद्रोही आंदोलन को एक राजनीतिक मंच प्रदान करना था.

विडंबना यह रही कि हुर्रियत में अलग-अलग और अक्सर असहमत राजनीतिक समूहों की पार्टियां शामिल थीं. गिलानी की ओर से प्रतिनिधित्व करने वाला जमात कश्मीर के पाकिस्तान में विलय के पक्ष में था, जबकि जम्मू और कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) स्वतंत्र कश्मीर के पक्ष में था. गिलानी के कट्टरपंथी, अडिग रवैए के कारण 7 सितंबर 2003 को हुर्रियत तथाकथित कट्टरपंथी और उदारवादी समूहों में विभाजित हो गई. गिलानी ने जमात-ए-इस्लामी छोड़ दी और 2004 में तहरीक-ए-हुर्रियत नाम से अपनी खुद की पार्टी बनाई.

370 वाले प्रस्ताव पर क्या बोले सीएम?

वहीं, बीते दिन जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अनुच्छेद 370 को बहाल करने की मांग को लेकर विधानसभा में लाया गया प्रस्ताव सिर्प कैमरों के लिए पेश किया गया. इसका कोई वास्तविक महत्व नहीं है. अगर प्रस्ताव के पीछे कोई वास्तविक इरादा था, तो इस पर केंद्र शासित प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ चर्चा की जानी चाहिए थी.

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