इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने कहा है कि शादी के नाम पर महिलाओं का शोषण करने वाली प्रवृत्तियों को शुरुआती दौर में ही रोकना बेहद जरूरी है। इसी के मद्देनजर न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव की एकलपीठ ने प्रशांत पाल को अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया। आरोपी पर आरोप है कि उसने शादी का झूठा वादा कर एक महिला के साथ पांच वर्षों तक शारीरिक संबंध बनाए।
मुकदमा और जमानत याचिका
औरैया जिले के थाना औरैया में एक युवती ने प्रशांत पाल के खिलाफ शादी का झांसा देकर संबंध बनाने का मुकदमा दर्ज कराया था। आरोपी ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दिया था। उसकी ओर से दलील दी गई कि दोनों के बीच संबंध आपसी सहमति से थे और पीड़िता बालिग है। आरोपी ने कहा कि दोनों 2020 से साथ रह रहे थे और उसने कभी शादी का वादा नहीं किया।
पीड़िता को धमकाने का आरोप
अपर शासकीय अधिवक्ता ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी ने पांच साल तक पीड़िता का शोषण किया और अश्लील वीडियो के जरिए उसे धमकाया। ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि आरोपी की मंशा शुरू से ही धोखाधड़ी की थी और उसने केवल अपनी इच्छापूर्ति के लिए संबंध बनाए। सुप्रीम कोर्ट के दीपक गुलाटी बनाम हरियाणा राज्य मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर शादी का वादा शुरू से ही झूठा हो और उसका उद्देश्य केवल महिला की सहमति लेना हो, तो ऐसी सहमति को शून्य माना जाएगा। कोर्ट ने इसे समाज के खिलाफ गंभीर अपराध बताया और कहा कि ऐसे मामलों में कोई उदारता नहीं दिखाई जा सकती। इसी कारण प्रशांत पाल की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई।