बरेली।बरेली के एक निजी अस्पताल से मानवता को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है। बदायूं जिले के एक युवक की इलाज के दौरान मौत के बाद अस्पताल प्रबंधन ने बकाया बिल का हवाला देकर शव सौंपने से इनकार कर दिया। मजबूर पिता ने लोगों से मदद मांगकर पैसे जुटाए, तब कहीं जाकर बेटे का शव मिल सका।

बदायूं के दातागंज कोतवाली क्षेत्र के गांव नगरिया निवासी सोमनाथ वाल्मीकि के 26 वर्षीय बेटे धर्मपाल को एक दिसंबर को सड़क हादसे में गंभीर चोटें आई थीं। सरकारी अस्पताल में संतोषजनक इलाज न मिलने पर परिजन उसे बरेली के एक निजी अस्पताल ले गए। सोमनाथ के मुताबिक, अस्पताल में भर्ती करते समय इलाज के नाम पर पहले ही करीब तीन लाख रुपये जमा करा लिए गए।

करीब 14 दिन तक चले उपचार के दौरान खर्च लगातार बढ़ता गया और कुल बिल 6.10 लाख रुपये तक पहुंच गया। 14 दिसंबर को डॉक्टरों ने धर्मपाल को मृत घोषित कर दिया और शव सौंपने से पहले 3.10 लाख रुपये और जमा कराने की मांग रखी। पिता ने जब अपनी आर्थिक मजबूरी बताई तो भी अस्पताल प्रबंधन ने कोई रियायत नहीं दी।

पैसों के बिना नहीं मिला शव
परिजनों का आरोप है कि रकम पूरी न होने पर अस्पताल ने शव देने से साफ इनकार कर दिया। बेटे के शव के लिए पिता ने अस्पताल में कई बार गुहार लगाई, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। निराश होकर वह गांव लौट आए और रिश्तेदारों व परिचितों से मदद मांगी। किसी तरह लोगों के सहयोग से 2.80 लाख रुपये जुटाकर दोबारा अस्पताल पहुंचे, लेकिन 30 हजार रुपये कम होने पर फिर शव रोक लिया गया।

इसके बाद पीड़ित पिता ने पुलिस की शरण ली। पुलिस हस्तक्षेप के बाद अस्पताल ने शव सौंपा, तब जाकर परिवार अपने बेटे को घर ले जा सका। इस घटना की जानकारी फैलते ही लोगों की आंखें नम हो गईं।

इलाज के लिए गिरवी रखा घर
सोमनाथ वाल्मीकि ने बताया कि बेटे के इलाज के लिए उन्होंने पहले ही डेढ़ लाख रुपये में अपना घर गिरवी रख दिया था। इसके बावजूद खर्च पूरा नहीं हो सका, तो उधार लेना पड़ा और सड़क पर लोगों से मदद तक मांगनी पड़ी। बेटे की मौत और उसके बाद शव पाने के लिए झेली गई पीड़ा ने पूरे परिवार को तोड़ कर रख दिया है।