नए आयकर विधेयक-2025 की समीक्षा कर रही एक संसदीय समिति ने सुझाव दिया है कि व्यक्तिगत करदाताओं को टीडीएस रिफंड के दावे के लिए तय समयसीमा के बाद भी आयकर रिटर्न दाखिल करने की अनुमति दी जाए, और इसके लिए कोई दंड न लगाया जाए। साथ ही समिति ने यह भी सिफारिश की कि धार्मिक और परमार्थ कार्यों से जुड़े ट्रस्टों को मिले गुमनाम दान को टैक्स दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।
यह समिति भाजपा सांसद बैजयंत जय पांडा की अध्यक्षता में गठित की गई थी, जिसने सोमवार को लोकसभा में अपनी 4,575 पन्नों की रिपोर्ट पेश की। समिति ने आयकर अधिनियम, 1961 की जगह लेने वाले आयकर विधेयक-2025 में कई महत्वपूर्ण बदलावों की अनुशंसा की है।
एनजीओ और ट्रस्टों को मिले गुमनाम दान पर कर लगाने का किया विरोध
रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि गैर-लाभकारी संगठनों, विशेषकर धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों से संचालित ट्रस्टों को मिले गुमनाम दान पर कर लगाने का प्रस्ताव स्पष्ट नहीं है और इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है। समिति ने यह भी कहा कि एनजीओ की ‘प्राप्तियों’ पर कर लगाने से आयकर के वास्तविक आय पर कराधान के सिद्धांत का उल्लंघन होता है। इसलिए, केवल शुद्ध आय पर कर लगाने की व्यवस्था को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
इसके साथ ही समिति ने यह भी सुझाव दिया कि धार्मिक एवं सामाजिक सेवा से जुड़े सभी ट्रस्टों को गुमनाम दान पर छूट मिलनी चाहिए, क्योंकि इन दानदाताओं की पहचान करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं होता — जैसे मंदिरों या संस्थाओं में दान पेटियों के जरिए प्राप्त होने वाला योगदान।
धार्मिक और सेवा ट्रस्टों को छूट में पिछली व्यवस्था बहाल करने की मांग
रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई कि नए विधेयक के खंड 337 के तहत केवल धार्मिक उद्देश्य वाले ट्रस्टों को सीमित छूट दी गई है, जबकि पहले के कानून — आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115बीबीसी — में अधिक व्यापक छूट थी। समिति का कहना है कि मौजूदा प्रस्ताव से देशभर के एनजीओ सेक्टर पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
इसलिए समिति ने मांग की है कि 1961 के प्रावधान के अनुरूप गुमनाम दान के मुद्दे पर स्पष्टीकरण दोबारा विधेयक में जोड़ा जाए।
टीडीएस रिफंड पर समयसीमा की बाध्यता हटाने की सिफारिश
इसके अतिरिक्त समिति ने यह भी सिफारिश की है कि उन लोगों के लिए, जिन्हें सामान्यतः आयकर रिटर्न दाखिल करने की आवश्यकता नहीं होती, उन्हें भी बिना दंड के टीडीएस रिफंड के लिए नियत तिथि के बाद रिटर्न दाखिल करने की छूट मिलनी चाहिए। इसके लिए विधेयक में मौजूद वर्तमान प्रावधानों में आवश्यक संशोधन किए जाने की बात कही गई है।