गत 7 अक्टूबर, 2025 को चंडीगढ़ में एक अति गंभीर और दुखदायी घटना घटी। हरियाणा के अतिरिक्त पुलिस महा-निदेशक आई.पी.एस. अधिकारी पूरन कुमार ने गोली मार कर आत्महत्या कर ली। जिस समय यह दुःखद घटना हुई, पूरन कुमार की पत्नी अमनीत, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी हैं, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के साथ, प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में जापान गई हुई थीं।
उल्लेखनीय है कि आत्महत्या से पूर्व पूरन कुमार ने 9 पन्नों का सुसाइड नोट लिखा जिसमें बताया कि किस प्रकार हरियाणा के प्रशासनिक एवं पुलिस सेवा के अधिकारी उनका मानसिक उत्पीड़न कर रहे हैं। इनमें 8 वरिष्ठ आई.पी.एस एवं आई.ए.एस अधिकारियों के नाम लिखे गए हैं और उनकी कारगुजारियों का विवरण भी दिया गया है।
इस बीच एक और घटना घटी। रोहतक के पुलिस अधीक्षक नरेंद्र बिजारणिया ने प्रेस को वक्तव्य दे डाला कि मृतक पूरन कुमार एक व्यावसायी से हर महीने ढाई लाख रुपये लेना चाहते थे। इतनी गम्भीर घटना हुई और रोहतक के कप्तान साहब को ढाई लाख की माहवारी की याद आई, जबकि न वे पूरन कुमार के बॉस थे, नहीं, इंक्वायरी ऑफिसर थे। पूरन कुमार का तो अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ श्री बिजारणिया ने मीडिया के सामने मृतक को बेईमान सिद्ध करने की ओछी हरकत की। मृतक हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत कपूर से सिर्फ एक पायदान नीचे था। कल को उन्हें भी डीजीपी बनना था। चोर की दाढ़ी में तिनका होने की कहावत यहां चरितार्थ होती है।
हो सकता है कि अगले कुछ घंटों में परिस्थतियां बदल जायें किन्तु अभी तक इन दोनों अधिकारियों के विरुद्ध कोई कड़ी कार्रवाई न हुई और न ही पूरन कुमार के विरुद्ध साजिश रचने वाले अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के चेहरे उजागर किये गए।
हम इसे उदासीनता नहीं मानते। साफतौर पर यह हरियाणा सरकार की एक जघन्य घटना पर लीपापोती का प्रयास है। आखिर पूरन कुमार ने 9 पृष्ठों का प्रेम पत्र तो नहीं लिखा। सोचिये जो व्यक्ति दुनिया से अलविदा होने जा रहा है, सुसाइड नोट लिखते हुए उसकी मन: स्थिति क्या होगी, पीड़ा से उसका हृदय कितना विदीर्ण होगा। मरते वक्त इंसान को सच्चाई के अलावा कुछ नहीं सूझता। मुख्यमंत्री को टालमटोल के बजाय इस सच्चाई को कबूल कर लेना चाहिये था।
पूरन कुमार भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी थे, इस नाते केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इस प्रकरण में तुरन्त हस्तक्षेप करना चाहिये था। वे अपना कर्तव्यपालन में क्यों चूके? कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी एवं बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने पूरन कुमार के दुःखद निधन पर राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रतिक्रिया प्रकट की है। विपक्षी के रूप में इन्होंने ठीक ही निन्दा की। इस गम्भीर हादसे पर उनका चुप रहना उचित न होता। इन्होंने वक्तव्य देकर ठीक ही किया।
यक्ष प्रश्न है कि क्या अपराधियों को दंडित किये बिना पूरन कुमार की आत्मा को शान्ति मिलेगी? क्या दोषियों के चेहरे सामने नहीं आने चाहिये। भविष्य में जातिगत आधार पर उत्पीड़न होने कि नौबत आत्महत्या तक पर आ जाए। जो केन्द्र और हरियाणा की सत्ता पर काबिज़ है उन्हें भी, और जो भविष्य में सत्ता पर कब्जे का जुगाड़ भिड़ाने में लगे हैं, उन्हें देश को इस प्राणघातक माहौल से बाहर निकालने का प्रयास करना होगा।
छपते-छपते: राहुल गांधी पूरन कुमार की आत्महत्या पर दलित एजेंडा लेकर चंडीगढ़ पहुंचे। कहा- आज से नहीं वर्षों से दलितों का उत्पीड़न हो रहा है। इस बीच (14 अक्टूबर को) पूरन कुमार की आत्महत्या से जुड़ी जांच टीम के सदस्य ए.एस.आई संदीप कुमार ने वीडियो पर बयान देकर तथा 3 पन्नों का सुसाइड नोट लिख कर खुद को गोली मार कर आत्महत्या की। रोहतक साइबर सैल के इंचार्ज सन्दीप ने कहा कि पूरन कुमार भ्रष्टाचार में लिप्त था। 50 करोड़ रुपये की 'डील' का उल्लेख किया और पूरन कुमार के गनमैन से पकड़े गए ढाई लाख रुपये का जिक्र भी किया है। चंडीगढ़ आये राहुल गांधी ने पुलिस विभाग में इस दूसरी आत्महत्या पर कुछ नहीं कहा।
बरसों पहले जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला ने पुलिस को गुंडों का संगठित समूह बताया था। सिपाही से मंत्री बने रामानन्द तिवारी ने पुलिस के बड़े ऑपरेशन की जरूरत बताई थी। हरियाणा में हुई आत्महत्याओं से तो लगता है कि पुलिस की हालत जस की तस है।
गोविंद वर्मा (संपादक 'देहात')