रविवार यानी 23 नवम्बर, 2025 को यह ख़बर इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया में तेज़ी से प्रसारित हुई कि मुजफ्फरनगर के सी.एम.ओ (मुख्य चिकित्सा अधिकारी) डॉ. सुनील तेवतिया बिजनौर के चांदपुर कस्बा स्थित नवजीवन नर्सिंग होम में निजी प्रैक्टिस करते 'पकड़े' गए। यह अस्पताल उनकी पत्नी डॉ. नीतू तेवतिया का है।

खबरों में कहा गया कि राज्य महिला आयोग की सदस्य संगीता जैन पुलिस को लेकर नवजीवन नर्सिंग होम पहुंचीं और डॉ. तेवतिया को 300-300 रूपये फीस लेकर मरीजों को देखते हुए 'पकड़ा'। यह भी छापा गया है कि पुलिस को देख कर वे बाथरूम में 'छिप' गये।

डॉ. तेवतिया का कहना है कि संगीता जैन ने कुछ समय पूर्व अपने बेटे का मुजफ्फरनगर के डॉक्टर मुकेश जैन से ऑपरेशन कराया था, वे उन्हें घर बुलाकर बिलों व अन्य कागजात पर काउंटर साइन कराना चाहती थीं। घर आकर बिल व कागजात की तस्दीक करने से इंकार करने पर वे (संगीता जैन) नाराज़ हो गईं। दूसरी और संगीता जैन का कहना है कि डॉ. तेवतिया चांदपुर आकर प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं, 2 महीने पहले भी उन्हें ऐसा न करने को मना किया गया था क्यूंकि शासन से सर‌कारी चिकित्सकों को निजी प्रैक्टिस न करने की एवज में 20 प्रतिशत अलाउंस मिलता है।

यह भी कहा गया और छापा भी गया कि चांदपुर जाते समय डॉ. तेवतिया ने बहैसियत सी.एम.ओ. जानसठ एवं मीरापुर के राजकीय स्वास्थ्य केन्द्रों में चल रहे मुख्यमंत्री आरोग्य मेले का निरीक्षण भी किया।

मुजफ्फरनगर जिला अस्पताल के चिकित्सकों, सर्जन व स्टाफ पर भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार, लापरवाही, गलत एक्सरे, गलत प्रमाण पर देने व प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप लगते रहते हैं। अस्पताल में धरना प्रदर्शन तक हुए। प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर चिकित्सकों की गैरहाजिरी और फार्मासिस्टों द्वारा मरीजों का इलाज करने की खबरें भी छपीं। कोई भी डॉक्टर जेनरिक दवाईयां तजवीज़ नहीं करता, पर्चे पर बाहर की दवायें लिखी जाती हैं, यद्यपि इसके लिए मरीज़ और उनके तीमारदार भी चिकित्सक से आग्रह करते हैं। लैब टेस्टिंग, सीटी स्कैनिंग में भी शिकायतों की भरमार, कमीशनखोरी आदि बीमारियों से अस्पताल घिरा है।

इस सब के बावजूद जिला अस्पताल में प्रतिदिन हजार, बारह सौ रोगी आते हैं। प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर भी रोगियों की भीड़ दिखाई देती है। औषधियां, एक्सरे, लैब सुविधाएं आदि भी उपलब्ध हैं। समय-समय पर राजकीय चिकित्सालयों का निरीक्षण भी होता रहता है। इसी वर्ष कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार, राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल, केन्द्र एवं राज्य स्तर की टीम ने राजकीय अस्पताल का निरीक्षण किया। 19 नवंबर को एडी सहारनपुर मंडल डॉ. रामानन्द ने निरीक्षण किया।

केन्द्र एवं राज्य सरकारों की ओर से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के निर्देश भी मिलते रहते हैं। इस सब के उपरान्त भी, अस्पतालों व चिकित्सकों की स्थिति में सुधार न हो पाना अफसोसजनक है। यह इस लिए भी खेदजनक है कि निजी अस्पतालों में सरकारी अस्पतालों के बनिस्बत ज्यादा लूट खसोट है। इसी लिए गरीब वर्ग के लोग एवं मध्यमवर्गीय मरीज़ सरकारी अस्पतालों की ओर रुख करते हैं।

डॉ. सुनील तेवतिया की खबर कुछ सवाल भी खड़े करती है। क्या ऊंचे पद पर बैठे चिकित्सकों को नॉन प्रैक्टिस अलाउंस प्राप्त करने के बावजूद प्राइवेट प्रैक्टिस से 300-300 कमाने चाहिए? क्या कोई सरकारी चिकित्सक अपनी पत्नी के क्लीनिक पर नहीं जा सकता? क्या महिला आयोग की सदस्य को 'पकड़ने' या 'छापा' मारने जैसा वैधानिक अधिकार है? जिस प्रकार से मीडिया को ब्रीफ किया गया और बाथरूम में घुसने जैसी खबर दी गई, वह खराबी को रोकने से ज्यादा व्यक्ति को बदनाम करने का प्रयास दिखाई देता है। जांच में यह भी देखा जाना चाहिये कि क्या संगीता जैन ने सीएमओ को घर बुला कर सत्यापन कराना चाहा था।

सरकारी डॉक्टरों द्वारा प्राइवेट प्रैक्टिस और राजकीय चिकित्सालयों की दुरावस्था बड़ी खामियां हैं, जिनको शासन द्वारा दूर किया जाना अति आवश्यक है। डॉ. सुनील तेवतिया का मामला व्यक्तिगत मुद्दा है, इसकी निष्पक्ष जांच की दरकार है।

गोविंद वर्मा (संपादक 'देहात')