यह घटना अलीगढ़ जिले के खैर थानाक्षेत्र के ग्राम कुंवरपुर की 28 मई, 2024 की है। पूरन सिंह नाम का एक किसान ट्रैक्टर से अपना खेत जोत रहा था। थोड़ी असावधानी के कारण ट्रैक्टर चलाते समय पड़ौसी के खेत की मेड़ मामूली सी कट गई। इस पर दूसरे खेत के मालिक किसान ने अपने कुछ लोगों को साथ लेकर किसान पूरन सिंह को बुरी तरह पीट दिया।
चूंकि इस देश में धर्मनिरपेक्षता का राज है, इसलिए मीडिया यह नहीं लिख सकता कि पूरन सिंह को पीटने वाले मुसलमान थे। यह छापा जाएगा कि ‘दूसरे सम्प्रदाय’ के लोगों ने ट्रैक्टर चलाने वाले किसान को पीटा। इस प्रकार यह छापना वर्जित है कि पूरन सिंह को पीटने वाले लोग एक मस्जिद में एकत्र हुए और यही कहा जाएगा कि वे एक ‘धार्मिक स्थल’ पर एकत्र हुए।
उस धार्मिक स्थल (यानी मस्जिद) से निकली भीड़ ने खूब पथराव किया और लाठी-डंडे लेकर पूरन सिंह के मकान पर धावा बोल दिया। घर के सभी स्त्री- पुरुषों को पीट-पीट कर लहूलुहान कर दिया और घर के भीतर जमकर तोड़-फोड़ की। पूरन सिंह के घर पर धावा बोलने वाली एक ‘सम्प्रदाय’ विशेष की भीड़ में लाठी-डंडों से लैस महिलायें भी थीं, भले ही उस वक्त बुर्का या हिजाब नहीं पहन रखा था।
ऐसे मामलों में पुलिस प्रायः तरकीब से काम लेती है। पुलिस दो सम्प्रदायों के बीच टकराव की कहानी गढ़ती है और पिटने व पीटने वाले पक्षों के चार-चार आदमियों को हवालात का रास्ता दिखाती है या फिर दबाव डालकर फैसला करा देती है ताकि पुलिस कोर्ट कचहरी के चक्कर से बचे। 99 प्रतिशत मामलों में ऐसा ही होता है।
पूरन सिंह के मामले में ऐसा नहीं हो सका। उनसे और उनके परिवारजनों से की गई मारपीट तथा घर को बुरी तरह से शतिग्रस्त करने की रिपोर्ट पुलिस को दर्ज करनी पड़ी क्यूँकि किसान पूरन सिंह का बेटा राजकुमार सिंह पुलिस में दरोगा है, दूसरा, उत्तर प्रदेश में योगी की सरकार है।
कुछ वर्षों पूर्व सहारनपुर जिले के झबरेड़ा कस्बे में एक ऐसा ही बवाल हुआ था। झबरेड़ा में गुर्जर बिरादरी का एक प्रभावशाली परिवार है। इस परिवार से विधायक और मंत्री बनते रहे हैं। परिवार की बाजार में दर्जनों दुकानें हैं। एक किरायेदार (दूसरे सम्प्रदाय वाला) बरसों से किराया नहीं दे रहा था, न ही दुकान का कब्जा छोड़ रहा था। अदालत से दुकान की बेदखली का आदेश आ गया। सरकारी अमला जब दुकान खाली कराने पहुंचा तो किरायेदार ने एक ‘धार्मिक स्थल’ में जाकर शोर मचा दिया कि चैम्पियन परिवार के लोगों ने हमारी ‘पाक किताब’ की बेइज्जती की है, उसे अल्मारी से उठा कर नीचे फेंक दिया। फिर क्या था? अन्तरराष्ट्रीय फार्मूले के मुताबिक एक ‘सम्प्रदाय विशेष’ के लोग लाठी-डंडे, पत्थर लेकर उतर पड़े और पूरे बाजार में तांडव मचा दिया। यहां तक कि चैम्पियन परिवार के वाहनों को भी क्षतिग्रस्त कर डाला। यह कहीं भी हो सकता है, चाहे कुंवरपुर हो, झबरेडा हो, कानपुर हो या प्रयागराज! भारत में धर्मनिरपेक्षता है, गंगा-जमुनी सभ्यता है और भाईचारा है। फिर भी लोगों को कुंवरपुर जैसी घटनाओं से कुछ शिक्षा तो लेनी होगी।
गोविन्द वर्मा
संपादक 'देहात'