उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं प्रदेश के गन्ना विकास एवं चीनी मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने संयुक्त रूप से गन्ने के न्यूनतम मूल्य में 30 रूपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की घोषणा की है। मुख्यमंत्री योगी जी अपने शासनकाल में चार बार गन्ने के मूल्य में वृद्धि की घोषणा कर चुके हैं। मूल्य वृद्धि की घोषणा से कुछ समय पूर्व भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने पोस्ट डाली थी कि लखनऊ से किसानों के लिये खुशखबरी आने वाली है। संयोग से जब श्री योगी ने यह घोषणा की तब मुजफ्फरनगर के कुछ किसान नेता लखनऊ में मौजूद थे। उन्होंने मुख्यमंत्री एवं गन्ना मंत्री से भेंट कर दोनों का धन्यवाद अदा किया और मूल्य वृद्धि को कृषक हितैषी निर्णय बताया।
उत्तर प्रदेश में, विशेषकर शुगर बेल्ट कहे जाने वाले पश्चिमांचल में इस निर्णय से गन्ना उत्पादकों को अतिरिक्त आय होगी, क्यूंकि गन्ना मूल्य न बढ़ने पर गुड़ एवं खांडसारी उद्यमी भी गन्ना मूल्य घटा देते हैं। केंद्रीय कौशल विकास राज्यमंत्री जयंत चौधरी, पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान कृषक नेता धर्मेंद्र मलिक, सांसद चंदन चौहान, पूर्व विधायक उमेश मलिक, जिला पंचायत अध्यक्ष डॉ. वीरपाल निर्वाल, चौ. ब्रजेन्द्र सिंह आदि ने मूल्य वृद्धि का स्वागत किया है।
गन्ना कृषि अर्थ व्यवस्था का आधार है और गन्ना, गुड़, शक्कर, चीनी, अल्कोहल राजनीति से जुड़ा है। पूर्वांचल में शिब्बन लाल सक्सेना, बाबू गेंदा सिंह (जिन्हें गन्ना सिंह कहा जाता था) गन्ने की राजनीति से जुड़े थे। जब हरियाणा-पंजाब की सरकारों ने उत्तर प्रदेश से गुड़ आयात पर प्रतिबंध लगाया, तब गेंदा सिंह पूर्वांचल के गन्ना किसानों के हित में आन्दोलन चला रहे थे। उन्होंने कैराना का पुल पार करने का प्रयास किया। सिर पर गन्ने की भेली रख कर जब उत्तर प्रदेश की सीमा पार करने का प्रयास किया तो गिरफ्तार कर लिए गये। वे मुजफ्फरनगर में 'देहात' के कार्यालय पर भी पधारे थे। गुड़ पर प्रतिबंध व गन्ना उत्पादकों के हितों को लेकर उनका वक्तव्य 'देहात' में प्रकाशित हुआ था।
पं गोविंद बल्लभ पंत और बाबू संपूर्णानंद के मुख्य मंत्रित्वकाल में कृषि मंत्री के पास गन्ना विभाग भी होता था। जब चंद्रभानु गुप्ता मुख्यमंत्री बने और चौधरी चरण सिंह कृषि मंत्री नियुक्त हुवे, तब गन्ना विभाग कृषि मंत्रालय से अलग कर दिया गया और गन्ने का पृथक मंत्रालय बनाया गया। गन्ना मंत्रालय गुप्ता जी ने अपने पास ही रखा। तब से आज तक कृषि विभाग से गन्ना, अलग चला आ रहा है और गन्ना मंत्रालय को गृहमंत्रालय जैसा अहम मंत्रालय माना जाता है।
एक समय गन्ने का मूल्य ढाई रुपया मन (40 सेर) था, जलावन यानी ईंधन की लकड़ी 3 और साढ़े तीन रुपये मन थी। गन्ना मूल्य बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव वसन्त दादा पाटिल। जो बाद में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सोमांश प्रकाश जी के साथ जिले भर में गन्ना उत्पादकों की सभायें की थीं, जिनकी रिपोर्टिंग मैंने 'देहात' में प्रकाशित की थी। तब गन्ने का मूल्य सवा चार रुपये मन घोषित किया गया था।
जब चौ चरण सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने गन्ने का न्यूनतम मूल्य 8 रुपये मन निर्धारित कर दिया। किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई। ग्राम-ग्राम दीवाली जैसा माहौल बन गया। एक घटना याद आ रही है, जो उसी दौर की है। मेरठ रोड पर, शहर कोतवाली के समीप सर शादीलाल शुगर मिल्स की बड़ी बिल्डिंग है। इसके एक हिस्से में मर्फी रेडियो की एजेंसी थी। हर्रो बाबू उसके प्रोपराइटर थे, जिनकी पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा से मित्रता थी। उन दिनों ट्रांजिस्टर रेडियो का प्रचलन हुआ ही था। हर्रो जी की दुकान पर एक किसान आया और ट्रांजिस्टर रेडियो की कीमत पूछी। कंधे से चादर उतार कर काउंटर पर फैला दी और बोला- 'कूड़ दे 8-10 ट्रांजिस्टर, सारों को एक-एक थमा दूंगा।' चादर में भर, कई रेडियो खरीद कर चला गया।
जब किसान के पास पैसा आता है तो सकल समाज को उसका लाभ पहुंचता है। यहां तक कि कचहरी में बैठे वकील-मुंशी और स्टाम्प फरोशों व टाइपिस्टों का धंधा भी चलने लगता है। किसान की आय बढ़ने से बहुत लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचता है। गन्ना मूल्य के साथ ही अनाज, तिलहन, दलहन एवं अन्य कृषि जन्य पदार्थों के समर्थन मूल्य बढ़ाये जाने से किसान लाभान्वित हुआ है। यह, अफसोस की बात है कि लम्बी-लम्बी लग्जरी गाड़ियां रखने वाले, 15-15, 20-20 हजार के ब्रांडेड जूते और शानदार बंगलों में रहने वाले कथित किसान नेता किसानों को भड़काके, गुमराह कर अराजकता फैलाने में कामयाब हो जाते हैं।
आम किसान परिश्रम कर पीढ़ी-दर-पीढ़ी परेशान और आर्थिक दबाव में रहता है और किसान नेता उसकी गरीबी, तंगहाली व मजबूरी की एवज में करोड़पति सरमायेदारों की सूची में शामिल हो जाते हैं। किसानों को अपने हितों की रक्षा के साथ सर्वसमाज की भी रक्षा करनी है और देखना है कि दलाल उसे अन्नदाता बताकर उनका मूर्ख न बनायें। अपना हित साधना जरूरी है और अपने बीच पनप रही शोषकों की नई जमात से भी बच कर रहना आवश्यक है। दलाल और नेता के अन्तर को समझा जाना चाहिए, इसी में ही किसान की भलाई है। किसानों के शोषण और ज़ोर दबाव का युग समाप्त हो चुका है। अब कोई भी राजनीतिक दल किसान की उपेक्षा नहीं कर सकता।
गोविंद वर्मा (संपादक 'देहात')