मन, वचन, कर्म से जो देश के लिये समर्पित होगा, वह सदा-सर्वदा अमर रहेगा। राजनीतिक परिस्थितियां, कालचक्र और शासकीय प्रतिबद्धताएं उस विराट महामानव के समक्ष नतमस्तक होती हैं। भारत की एकता और श्रेष्ठता के लिए जीवन समर्पित करने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर सारा राष्ट्र समस्त भेदों की जंजीरों को तोड़ उन्हें याद कर रहा है।

सरदार को लौह पुरुष की उपाधि क्यों, कब और कैसे मिली- नई पीढ़ी को यह जानना जरूरी है, क्योंकि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का उद्घोष स्वतंत्र भारत में उन्होंने ही किया था। यदि भारत को सशक्त और श्रेष्ठ देश एवं विश्वगुरु बनाना है तो सभी को सरदार के सिद्धांतों व नीतियों को अपनाना होगा। सरदार व्यक्ति नहीं, स्वयं में इतिहास थे। ऐसा इतिहास, जिसे शेल्फ या किताबों की अलमारी में संजोने की जरूरत नहीं, सदा जीवन्त रखने की जरूरत है।

सरदार के व्यक्तित्व एवं चरित्र को जानने के लिए मात्र एक घटना को स्मरण रखना पर्याप्त है। उन्हें अहसास हो गया था कि वे अब बचेंगे नहीं। मृत्युशैया पर पड़े हुए सरदार ने बेटी मणिबेन को एक पोटली पकड़ाई और कहा- “यह पार्टी की धरोहर है, चंदे के 40 हजार रुपये, इसे नेहरू जी को दे देना।”

गुजरात के केवड़िया शहर में, नर्मदा नदी के बीच साधु बेट द्वीप पर सरदार वल्लभभाई पटेल की विश्व की सबसे ऊंची 597 फीट ऊंची स्टैच्यू ऑफ यूनिटी सच्चे राष्ट्रवादियों से पुकार-पुकार कर कह रही है - “असली हिन्दुस्तानी हो तो देश को एक और श्रेष्ठ बनाने में अपने-अपने स्तर पर सच्चाई से काम करो।”

जन्म: 31 अक्तूबर 1875, नडियाद (बॉम्बे राज्य)- अब गुजरात

निधन:15 दिसंबर 1950, मुंबई

गोविंद वर्मा (संपादक 'देहात')