भारतीय वायुसेना के उपप्रमुख एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित ने रविवार को एक सेमिनार में मौजूदा युद्ध रणनीतियों में सर्विलांस और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक सिस्टम की अहमियत पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के अनुभव ने यह साफ कर दिया है कि युद्ध में जीत उसी की होती है जो सबसे पहले, सबसे सटीक और सबसे दूर तक प्रभावी कार्रवाई करता है।
वे दिल्ली में आयोजित सर्विलांस और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स इंडिया विषयक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। एयर मार्शल दीक्षित ने कहा कि आर्मेनिया-अजरबैजान, रूस-यूक्रेन और इस्राइल-हमास जैसे अंतरराष्ट्रीय संघर्षों के साथ-साथ भारत के ऑपरेशन सिंदूर से यह स्पष्ट होता है कि युद्धक्षेत्र में पहल करने वाला पक्ष ही अक्सर विजेता बनता है। उन्होंने इसे सैन्य इतिहास का मूल सिद्धांत बताया, जो आज की बदलती तकनीकी परिस्थितियों में और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है।
उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर से यह साबित हुआ कि भारत वर्तमान युद्ध की जमीनी हकीकतों के अनुरूप स्वयं को ढालने में सक्षम है। उन्होंने बताया कि आधुनिक युद्ध ने तकनीकी उन्नति के चलते दूरी और सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणाओं को पूरी तरह बदल दिया है।
एयर मार्शल ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में युद्ध के पुराने सिद्धांत चुनौती के दायरे में हैं और तकनीक के चलते नए सिद्धांत उभर रहे हैं। पहले क्षितिज ही खतरे की सीमा मानी जाती थी, लेकिन अब स्कैल्प, ब्रह्मोस, हैमर जैसे आधुनिक मिसाइलों और BVR AAMs व सुपरसोनिक AGM जैसे हथियारों ने दूरियां बेअसर कर दी हैं। इस कारण इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स और निगरानी अब केवल सहायक तकनीक नहीं रही, बल्कि आज की सैन्य रणनीति की रीढ़ बन गई है।
उन्होंने कहा कि अब जब हथियार सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठे दुश्मन को निशाना बना सकते हैं, तो पारंपरिक मोर्चों की अवधारणा अप्रासंगिक हो जाती है। हमें अपनी निगरानी क्षमता को दुश्मन की सीमा तक विस्तारित करना होगा — तब से ही जब वह अपने देश की सीमा में ही मौजूद हो।
एयर मार्शल दीक्षित ने यह भी जोड़ा कि हाइपरसोनिक मिसाइलें कुछ ही मिनटों में लक्ष्य तक पहुंचने की क्षमता रखती हैं और ड्रोन झुंड पारंपरिक प्रतिक्रिया समय को बेअसर कर सकते हैं। ऐसे में रियल-टाइम सर्विलांस केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि रणनीतिक अस्तित्व की आवश्यकता बन चुकी है।