महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल द्वारा सुप्रीम कोर्ट के नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई के सम्मान में रविवार को एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य न्यायाधीश गवई ने राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों की गैर-मौजूदगी पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभ - न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका - एक-दूसरे के प्रति समान और सम्मानजनक व्यवहार करें।

संवैधानिक संस्थाओं के प्रति सम्मान का सवाल

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अगर भारत के मुख्य न्यायाधीश पहली बार महाराष्ट्र का दौरा कर रहे हैं और राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक तथा मुंबई पुलिस आयुक्त अनुपस्थित हैं, तो यह विचारणीय विषय है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रोटोकॉल का मामला नहीं, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं के बीच आपसी सम्मान का मुद्दा है।

मुख्य न्यायाधीश गवई हुए भावुक

सम्मान समारोह के दौरान मुख्य न्यायाधीश गवई भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि जनता से मिले प्यार और सम्मान से वे अभिभूत हैं। उन्होंने अपने जीवन के संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि अमरावती जिले के नगरपालिका स्कूल से पढ़ाई करके यहां तक का सफर तय करना एक कठिन लेकिन प्रेरणादायक यात्रा रही।

पिता के सपने को किया साकार

डॉ. गवई ने कहा कि उनके पिता वकील बनना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियों के कारण वह अपना सपना पूरा नहीं कर सके। इसलिए उन्होंने अपने बेटे में वही सपना देखा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने अपने पिता का सपना पूरा किया और कानून के क्षेत्र में आगे बढ़े।

संविधान और सामाजिक न्याय पर विचार

मुख्य न्यायाधीश ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व की कमी पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कई वर्षों के बाद भी इन समुदायों से न्यायाधीश का न होना सोचनीय है। नागपुर में अपने कार्यकाल के दौरान लिए गए निर्णयों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए, विशेषकर झुग्गी-झोपड़ियों से जुड़े मामलों में।

सम्मान के साथ समर्पण का संदेश

मुख्य न्यायाधीश ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि कई कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन किया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को मजबूत बनाने के लिए सभी संवैधानिक संस्थाओं का आपसी सम्मान बेहद आवश्यक है।