भारत में इंसानों और आवारा कुत्तों के बीच अधिकतर मुठभेड़ सुरक्षित रहती हैं। एडिनबरा विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 82 फीसदी मामलों में कुत्तों का व्यवहार दोस्ताना या तटस्थ होता है, जबकि केवल दो फीसदी मामलों में ही भौंकने, दौड़ाने या काटने जैसी आक्रामकता देखी गई।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और स्वास्थ्य पर असर
यह अध्ययन ऐसे समय में सामने आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के सभी क्षेत्रों से आवारा कुत्तों को हटाकर आश्रय गृहों में भेजने का निर्देश दिया। कोर्ट का यह फैसला कुत्तों के काटने और रेबीज के बढ़ते मामलों को देखते हुए लिया गया। प्रोफेसर कृतिक श्रीनिवासन के नेतृत्व में किए गए शोध में चेतावनी दी गई है कि यदि कुत्तों को बड़े पैमाने पर हटाया या मारा गया, तो इससे स्वास्थ्य क्षेत्र में हुई प्रगति प्रभावित हो सकती है।

रेबीज के मामले में गिरावट
भारत में बीते 20 वर्षों में इंसानों में रेबीज के मामले करीब 75 फीसदी घट गए हैं। 2005 में 274 मामले सामने आए थे, जबकि 2022 में यह संख्या घटकर 34 रह गई। इस गिरावट में कुत्तों के सामूहिक टीकाकरण और बेहतर उपचार का अहम योगदान रहा है। हालांकि, समय पर उपचार और टीकाकरण पूरा करना अभी भी चुनौती बना हुआ है।

खाली जगह पर नए खतरे
श्रीनिवासन ने बताया कि किसी इलाके से कुत्तों को हटाने पर वहां नई कुत्तों की आबादी बढ़ सकती है और कभी-कभी ये स्थान अन्य खतरनाक जानवरों से भर सकते हैं। 2022-23 में किए गए सर्वे के अनुसार, भारत के 15 राज्यों में हर 1,000 लोगों में से केवल 4.7 को कुत्तों ने काटा, जो ब्रिटेन के चेशायर जिले (18.7 प्रति 1,000) के आंकड़े से काफी कम है।

सर्वे में मिली जनसंख्या की राय
चेन्नई, जयपुर और केरल के मलप्पुरम में किए गए सर्वे में 86 फीसदी लोगों ने कुत्तों के टीकाकरण का समर्थन किया, जबकि 66 फीसदी लोग नसबंदी के पक्ष में थे। इसके अलावा, 70 फीसदी से अधिक लोग कुत्तों को मारने के खिलाफ थे, जिनमें से 77 फीसदी ऐसे लोग भी थे जिन्हें कभी कुत्तों ने दौड़ाया या काटा था।

दी गई सलाह
शोध में कहा गया है कि समस्या का समाधान वैज्ञानिक और समुदाय-आधारित तरीके से किया जाना चाहिए। इसके लिए मुफ्त और समय पर उपचार, नियमित टीकाकरण अभियान, खाने की बर्बादी पर रोक, लोगों में जागरूकता और कुत्तों की देखभाल करने वालों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी जरूरी है। शोध में यह भी चेतावनी दी गई है कि कुत्तों को हटाने जैसी नीतियां तुरंत समाधान जैसी लग सकती हैं, लेकिन लंबी अवधि में ये सुरक्षित नहीं रहतीं।