उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वीकार कर लिया है। धनखड़ ने स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला देते हुए सोमवार को इस्तीफा सौंपा था। मंगलवार को राज्यसभा को इस बाबत गृह मंत्रालय की अधिसूचना के माध्यम से औपचारिक जानकारी दी गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए धनखड़ के स्वास्थ्य लाभ की कामना की और उनके योगदान की सराहना की। उन्होंने लिखा कि जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति सहित विभिन्न जिम्मेदारियों में देश की सेवा की है।
सभापति का पद भी खाली हुआ, उपसभापति संभालेंगे कार्यवाही
धनखड़ के इस्तीफे के साथ ही राज्यसभा के सभापति का पद भी स्वत: रिक्त हो गया है, क्योंकि उपराष्ट्रपति उच्च सदन के पदेन सभापति होते हैं। ऐसे में अब मानसून सत्र की कार्यवाही उपसभापति हरिवंश के नेतृत्व में चलेगी, या राष्ट्रपति द्वारा नामित सदस्य को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है।
छह माह के भीतर होंगे उपचुनाव
भारतीय संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति पद के खाली होने की स्थिति में छह महीने के भीतर चुनाव कराया जाना आवश्यक है। यह प्रावधान मृत्यु, त्यागपत्र या पदच्युत होने की स्थिति में लागू होता है।

तीसरे उपराष्ट्रपति जिन्होंने कार्यकाल के दौरान छोड़ा पद
धनखड़ देश के तीसरे ऐसे उपराष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा दिया है। इससे पहले वी.वी. गिरि (1969) और आर. वेंकटरमण (1987) ने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया था, जबकि पूर्व उपराष्ट्रपति कृष्णकांत का कार्यकाल के दौरान निधन हो गया था।
इस्तीफे से एक दिन पहले तक सदन में सक्रिय रहे
धनखड़ ने अपने इस्तीफे से ठीक एक दिन पहले सोमवार को राज्यसभा की कार्यवाही में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उन्होंने विपक्ष से सार्थक चर्चा के लिए सदन का मंच बनाने की अपील की थी। इसके अलावा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया स्पष्ट की और एक अन्य महाभियोग नोटिस में हस्ताक्षर को लेकर जांच का आदेश भी दिया।
प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और सांसदों का जताया आभार
74 वर्षीय धनखड़ ने इस्तीफे में संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का हवाला देते हुए लिखा कि वह चिकित्सकीय सलाह पर स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए पद छोड़ रहे हैं। अपने पत्र में उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कैबिनेट सदस्यों और सभी सांसदों का आभार जताया।
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री से मिला सहयोग अमूल्य रहा, उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। सांसदों से जो स्नेह, विश्वास और आत्मीयता मिली, उसे जीवनभर याद रखूंगा।”
न्यायिक शुचिता और किसानों के मुद्दों पर रहे मुखर
अपने कार्यकाल में धनखड़ न्यायपालिका में पारदर्शिता और किसानों के हितों की पैरवी को लेकर चर्चित रहे। उन्होंने अपने वक्तव्य में लिखा कि उपराष्ट्रपति रहते हुए देश के लोकतांत्रिक विकास और आर्थिक प्रगति का साक्षी बनना उनके लिए गौरव की बात रही है। उन्होंने भारत के उज्जवल भविष्य और वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर होने को लेकर पूर्ण विश्वास जताया।