सुप्रीम कोर्ट ने मानवीय आधार पर बांग्लादेश की एक गर्भवती महिला और उसकी आठ वर्षीय बेटी को भारत में प्रवेश की अनुमति प्रदान की है। जानकारी के अनुसार, कुछ माह पहले दोनों को सीमा पार कराकर बांग्लादेश भेज दिया गया था।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बुधवार को पश्चिम बंगाल सरकार को बच्चे की सुरक्षा व देखभाल सुनिश्चित करने को कहा। इसके साथ ही बीरभूम जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) को निर्देश दिया गया कि गर्भवती सुनाली खातून को आवश्यक चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।

अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उस बयान को भी दर्ज किया, जिसमें केंद्र सरकार ने मानवीय दृष्टिकोण से महिला और उसकी बेटी को भारत में प्रवेश की सहमति जताई है। केंद्र ने यह भी कहा कि दोनों को देश में निगरानी में रखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सुनाली और उसकी बच्ची को दिल्ली वापस लाया जाए, जहां से 27 जून को उन्हें निर्वासित किया गया था।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और संजय हेगड़े ने याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी कि सुनाली के पति सहित परिवार के अन्य सदस्य भी बांग्लादेश में फंसे हुए हैं, जिन्हें वापस लाना आवश्यक है। उन्होंने केंद्र से इस संबंध में आगे के निर्देश लेने का आग्रह किया।

हालांकि, सॉलिसिटर जनरल मेहता ने इस दावे का विरोध किया कि बांग्लादेश में मौजूद सभी लोग भारतीय नागरिक हैं। उनका कहना था कि वे बांग्लादेश के नागरिक हैं और सिर्फ मानवीय कारणों से महिला और उसकी बेटी को भारत लौटने की अनुमति दी जा रही है।

महिला के पिता का आरोप है कि परिवार लगभग दो दशक से दिल्ली के रोहिणी सेक्टर-26 में दिहाड़ी मजदूर के रूप में रह रहा था। 18 जून को पुलिस ने उन्हें बांग्लादेशी होने के संदेह में हिरासत में लिया और 27 जून को सीमा पार भेज दिया।