नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई वाहन सार्वजनिक जगहों पर नहीं चलता, तो उसके मालिक पर उस अवधि का मोटर वाहन कर नहीं लगाया जा सकता। जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के दिसंबर 2024 के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर यह फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा कि मोटर वाहन कर मूल रूप से प्रतिपूरक प्रकृति का होता है। इसका आधार यह है कि जो व्यक्ति सड़क, राजमार्ग जैसे सार्वजनिक ढांचों का उपयोग करता है, उसी पर कर लगाने का औचित्य बनता है।
आंध्र प्रदेश अधिनियम का हवाला
कोर्ट ने 29 अगस्त को सुनाए फैसले में कहा कि आंध्र प्रदेश मोटर वाहन कराधान अधिनियम, 1963 की धारा 3 राज्य सरकार को कर लगाने का अधिकार देती है। लेकिन यदि वाहन का इस्तेमाल सार्वजनिक स्थान पर न हो, तो यह कर वसूलना उचित नहीं होगा।
मामला क्या था
दरअसल, 1985 से लॉजिस्टिक सपोर्ट का काम कर रही एक कंपनी को नवंबर 2020 में विशाखापत्तनम स्टील प्लांट के केंद्रीय डिस्पैच यार्ड में लौह व इस्पात सामग्री के परिवहन और भंडारण का अनुबंध मिला था। यार्ड चारदीवारी से घिरा है और वहां सिर्फ अधिकृत वाहनों को ही प्रवेश मिलता है।
कंपनी ने परिसर में 36 वाहन संचालित किए और इस दौरान मोटर वाहन कर से छूट मांगी। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कंपनी को राहत देते हुए राज्य प्राधिकरण को 22.71 लाख रुपये वापस करने का आदेश दिया। राज्य सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने भी हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया और कहा कि जब वाहन सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का उपयोग ही नहीं कर रहे, तो कर लगाने का कोई औचित्य नहीं है।