महेंद्रगढ़ जिला, जो डार्क ज़ोन में शामिल है, वहां गिरते भूजल स्तर ने पारंपरिक खेती को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। लेकिन इस संकट को अवसर में बदलते हुए खायरा गांव के किसान योगेंद्र यादव ने मशरूम की खेती में नई मिसाल कायम की है। उन्होंने न केवल खेती का तरीका बदला बल्कि चार वर्षों में 20 क्विंटल से बढ़ाकर 1100 क्विंटल तक उत्पादन कर 55 लाख रुपये का सालाना टर्नओवर खड़ा किया।
टैक्सी चलाने से की शुरुआत, फिर अपनाया खेती को नया रास्ता
योगेंद्र यादव ने वर्ष 2005 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की, लेकिन सरकारी नौकरी नहीं मिलने पर गुरुग्राम में टैक्सी चलाने लगे। कुछ साल बाद गांव लौटे और तीन एकड़ भूमि पर खेती शुरू की। वर्ष 2022 में बोरवेल सूखने के बाद उन्होंने खेती में नवाचार की ओर रुख किया। महेंद्रगढ़ कृषि विज्ञान केंद्र और मुरथल मशरूम प्रशिक्षण केंद्र से प्रशिक्षण लेकर उन्होंने ‘महेंद्रगढ़ मशरूम फार्म’ की शुरुआत की।
लगातार बढ़ता उत्पादन और आमदनी
शुरुआत में मात्र 20 क्विंटल मशरूम उत्पादन से 2.5 लाख रुपये की आय हुई थी। 2023 में 10 हजार ट्रे पर 200 क्विंटल उत्पादन कर यह आमदनी 15 लाख रुपये तक पहुंच गई। 2024 में खाद यूनिट जोड़कर 900 क्विंटल उत्पादन से 25 लाख रुपये की कमाई हुई। अब दो नई यूनिट्स के साथ उत्पादन बढ़कर 1100 क्विंटल और वार्षिक आमदनी 55 लाख रुपये तक पहुंच चुकी है। उनका लक्ष्य अगले वर्ष 1500 क्विंटल उत्पादन का है। दिल्ली, गुरुग्राम और रेवाड़ी में सप्ताह में तीन दिन आपूर्ति की जाती है।
नई वैरायटी और प्रसंस्करण से जुड़ा नवाचार
योगेंद्र ने सफेद बटन, पिंक और व्हाइट ऑयस्टर, मिल्की, ऋषि समेत कुल सात प्रकार की मशरूम वैरायटी विकसित की हैं। लंबे समय तक भंडारण की चुनौती से निपटने के लिए उन्होंने प्रसंस्करण यूनिट शुरू की, जहां मशरूम से नमकीन, बिस्किट, अचार, लड्डू और पाउडर जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं। इनकी बाजार में मांग लगातार बढ़ रही है।
महिलाओं को रोजगार और युवाओं को प्रशिक्षण
फार्म पर दस से अधिक महिलाओं को रोजगार दिया गया है। परिवार के सदस्य — पत्नी ममता और बेटे विनय व विहान — भी कार्य में सहयोग कर रहे हैं। योगेंद्र प्रतिमाह लगभग 50 युवाओं को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं, जिससे गांव में स्वरोजगार की नई राह खुल रही है।