मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित चरगवां क्षेत्र में संचालित सीएम राइज स्कूल में सामने आए कथित वित्तीय घोटाले की जांच अब रफ्तार पकड़ चुकी है। आर्थिक अपराध शाखा (EOW) और लोकायुक्त ने इस मामले में स्कूल के प्राचार्य बी.एस. पटेल के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है।
सांदीपनि सीएम राइज सरकारी स्कूल में लाखों रुपये के खर्च में भारी अनियमितताओं का खुलासा एक विशेष मीडिया रिपोर्ट के बाद हुआ था। रिपोर्ट में फर्जी बिलों और कथित भ्रष्टाचार की परतें खुलते ही प्रशासन के साथ-साथ जांच एजेंसियां भी हरकत में आ गईं।
फर्जी बिल और कागजी खर्च
प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि स्कूल के नाम पर बड़ी राशि का भुगतान ऐसे कार्यों के लिए किया गया, जो केवल कागजों में दर्ज थे। बिरयानी, रसगुल्ला, प्रिंटर इंक, गमले, पेंटिंग, टेंट और जूता स्टैंड जैसे मदों में लाखों रुपये खर्च दिखाए गए, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई प्रमाण नहीं मिला।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि कई तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों—जैसे चपरासी, सफाईकर्मी और संविदा कर्मचारी—के नाम पर भुगतान दर्ज किया गया, जबकि इनमें से कई कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने कोई कार्य नहीं किया और न ही उनके खातों में कोई राशि आई।
‘सुपरमैन’ बना चपरासी
एक चपरासी हीरालाल के नाम पर अकेले कई कार्यों जैसे पुताई, फूलों की सजावट, समतलीकरण, गमले में मिट्टी भरना और वॉशरूम निर्माण जैसे कार्य दर्ज हैं। दस्तावेजों के मुताबिक, इन कार्यों के लिए उसके खाते में बड़ी धनराशि स्थानांतरित की गई, जबकि वह खुद इस बात से अनभिज्ञ है।
शिकायतकर्ता के दस्तावेजों से खुली पोल
शिकायतकर्ता द्वारा संबंधित दस्तावेजों के साथ EOW और लोकायुक्त कार्यालय पहुंचकर दिए गए बयान के बाद इस पूरे घोटाले की परतें खुलती चली गईं। जांच एजेंसियों ने शिकायतकर्ता से पूछताछ कर दस्तावेज जुटा लिए हैं, और अब आगे की कानूनी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल
यह मामला शहडोल के बहुचर्चित ‘काजू घोटाले’ की तर्ज पर अब ‘बिरयानी-रसगुल्ला घोटाले’ के रूप में चर्चा में आ गया है। जांच की गहराई यह दर्शाती है कि यह प्रकरण केवल एक स्कूल तक सीमित नहीं, बल्कि शिक्षा विभाग में चल रही वित्तीय अनियमितताओं की एक बड़ी तस्वीर का हिस्सा हो सकता है।
सूत्रों का मानना है कि आने वाले दिनों में प्राचार्य बीएस पटेल के खिलाफ सख्त कार्रवाई तय है। यह मामला न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि विभागीय प्रशासन की पारदर्शिता पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।