जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेकर देश का गौरव लौटाने वाले शहीद ऊधम सिंह की शहादत को भले ही देश नमन करता है, लेकिन उनके परिवार को आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। आजादी के बाद दशकों बीत जाने के बावजूद शहीद के परिजन बीते 19 वर्षों से सरकारी नौकरी के वादे के इंतजार में दर-दर भटक रहे हैं।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा 2006 में जारी नियुक्ति पत्र के बावजूद, शहीद की बहन आस कौर के पोते जीत सिंह के बेटे जग्गा सिंह को आज तक नौकरी नहीं मिली है। जीत सिंह का परिवार सुनाम के सिनेमा रोड के पास एक छोटे से मकान में रहता है और दोनों बेटे दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। उन्होंने अपने बेटे जग्गा सिंह, जो 10वीं पास है, के लिए नौकरी की मांग की थी।
जीत सिंह बताते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के कार्यकाल में 20 जुलाई 2006 को नियुक्ति संबंधी पत्र जारी किया गया था, लेकिन इसके बाद प्रकाश सिंह बादल दो बार मुख्यमंत्री बने और फिर से कैप्टन अमरिंदर सिंह सत्ता में लौटे, पर वादा अब तक अधूरा है।
हर वर्ष 31 जुलाई को उन्हें मुख्यमंत्री द्वारा शॉल देकर औपचारिक सम्मान तो जरूर मिलता है, लेकिन नौकरियों का वादा अधूरा ही रह जाता है। जीत सिंह को अब उम्मीद है कि सुनाम से संबंध रखने वाले मुख्यमंत्री भगवंत मान उनके परिवार की बात जरूर सुनेंगे।
अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए जीत सिंह ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया, चंडीगढ़ और संगरूर के कई चक्कर काटे। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवां और कैबिनेट मंत्री अमन अरोड़ा से भी न्याय की गुहार लगाई है।
शहीद के घर की दीवारें कई नेताओं और अधिकारियों से मिले सम्मानों की तस्वीरों से सजी हैं, लेकिन नौकरी के इंतजार में उनका परिवार आज भी जमीनी हकीकत से जूझ रहा है। अब जबकि शहीद ऊधम सिंह के बलिदान दिवस की तैयारियाँ जोरों पर हैं और मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के भी शामिल होने की संभावना है, जीत सिंह को उम्मीद है कि इस बार सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि न्याय भी मिलेगा।