अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में हर साल सर सैयद डे पर होने वाला विशाल भोज इस बार भी धूमधाम से मनाया गया। यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले लगभग 37 हजार छात्र-छात्राएं और आठ हजार से अधिक शिक्षक व स्टाफ के लिए तैयार किए गए इस खास डिनर के लिए इस बार 890 बकरों का मांस इस्तेमाल किया गया। भोज में मुख्य रूप से कोरमा और बिरयानी परोसी गई, वहीं मिठाई के रूप में शाही टुकड़े का स्वाद छात्रों और अतिथियों ने चखा। शाही टुकड़े की कुल खपत लगभग 90 क्विंटल रही।
17 अक्टूबर की शाम छात्र शेरवानी-पायजामा और छात्राएं सफेद सलवार-कुर्ता व दुपट्टा में हॉल पहुंचने लगीं। शाम लगभग सात बजे से दावत का शुभारंभ हुआ। अब्दुल्ला हॉल में 1500 छात्राओं के लिए दो क्विंटल बकरे का बिरयानी, चार क्विंटल कोरमा और 4.5 क्विंटल शाही टुकड़े की दावत सजाई गई। इस हॉल में ही करीब 40-42 बकरों का मांस इस्तेमाल हुआ। यूनिवर्सिटी के कुल 20 हॉलों में दस्तरखान सजाए गए, जिसमें सभी छात्रों और स्टाफ के लिए भोजन उपलब्ध कराया गया।
प्रॉक्टर प्रो. वसीम अली ने बताया कि देश-विदेश से पूर्व छात्र भी इस मौके पर शामिल होते हैं और इसे एएमयू की गौरवपूर्ण परंपरा माना जाता है। प्रोवोस्ट प्रो. बीबी सिंह ने कहा कि हॉल में बकरे का कोरमा और बिरयानी के साथ मटर-पनीर, दाल और सब्जियों का भी इंतजाम रहा।
इतिहास और परंपरा
डॉ. राहत अबरार, पूर्व जनसंपर्क अधिकारी और उर्दू अकादमी के निदेशक बताते हैं कि सर सैयद डे पर डिनर की परंपरा 1913-14 से शुरू हुई थी। शुरू में यह सामूहिक दावत एसएस हॉल में होती थी। 1990 के दशक में छात्रों की संख्या बढ़ने के कारण इसे क्रिकेट पवेलियन में स्थानांतरित किया गया। करीब वर्ष 2000 के बाद हॉल में ही भोजन कराने की परंपरा शुरू हुई। कोरोना काल में दो साल तक यह परंपरा बाधित रही।
बड़ा खाना की खास बातें
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20 हॉल में दस्तरखान
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890 बकरे कटे
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65 क्विंटल बकरे का कोरमा
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35 क्विंटल बकरे की बिरयानी
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7 क्विंटल मुर्गे का कोरमा (गर्ल्स हॉस्टल)
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90 क्विंटल शाही टुकड़ा
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लगभग 45 हजार छात्र, शिक्षक और अतिथि शामिल
यह भव्य दावत एएमयू बिरादरी के लिए गर्व का विषय है और इसे “बड़ा खाना” के नाम से भी जाना जाता है।