केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय स्टेट बैंक के कार्यक्रम में कहा कि 2014 से कारोबार को आसान बनाने के लिए कई क्रांतिकारी सुधार किए गए हैं। उन्होंने बताया कि वैश्विक मूल्य श्रृंखला वर्तमान में चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है, इसलिए सरकार का मुख्य ध्यान बुनियादी ढांचे के निर्माण और पूंजीगत व्यय में वृद्धि पर है।

वित्त मंत्री ने बताया कि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के जरिए सरकार ने 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बचत की है और पिछले दशक में 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाला गया। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी आधारित विकास को बढ़ावा देने के लिए डेटा की कीमत 2014 में 300 रुपये प्रति जीबी से घटकर 10 रुपये प्रति जीबी हो गई है।

देश को बड़े और विश्वस्तरीय बैंकों की जरूरत

निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत को बड़ी संख्या में विश्वस्तरीय बैंकों की आवश्यकता है और इस पर रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के साथ चर्चा जारी है। उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र से कहा कि उद्योग के लिए ऋण प्रवाह को और अधिक व्यापक और गहरा बनाया जाए। उन्होंने यह भी भरोसा जताया कि जीएसटी दर में कटौती से निवेश में बढ़ोतरी होगी।

वित्त मंत्री ने निजीकरण और बैंक विलय की प्रक्रिया का भी जिक्र किया। जनवरी 2019 में सरकार ने आईडीबीआई बैंक में अपनी 51% हिस्सेदारी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को बेच दी थी। इसके बाद रणनीतिक बिक्री के तहत अक्टूबर 2022 में सरकार और एलआईसी ने कुल 60.72% हिस्सेदारी बेचकर निवेशकों से रुचि पत्र आमंत्रित किए।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय भी इस दिशा में बड़ा कदम रहा। 2017 में देश में 27 बैंकों की संख्या थी, जो 12 हो गई। इसमें प्रमुख विलय शामिल हैं:

  • यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स का पंजाब नेशनल बैंक में विलय

  • सिंडिकेट बैंक का केनरा बैंक में विलय

  • इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय

  • आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक का यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में विलय

  • देना बैंक और विजया बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय

  • एसबीआई के पांच सहयोगी बैंक और भारतीय महिला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक में विलय

बैंकों से मानव संसाधन सुधार की अपील

वित्त मंत्री ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कहा कि वे शाखा कर्मचारियों को स्थानीय भाषा में ग्राहकों से संपर्क करने की सुविधा दें। उन्होंने कहा कि ग्राहकों के साथ कम संपर्क के कारण क्रेडिट सूचना कंपनियों पर निर्भरता बढ़ गई है, जिससे ऋण देने में देरी होती है।
सीतारमण ने कहा कि स्थानीय भाषा बोलने वाले कर्मचारियों की भर्ती और उनका बेहतर मूल्यांकन सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि बैंकिंग सेवा अधिक प्रभावी और ग्राहकों के अनुकूल हो।